कहीं सीवेज का संक्रमित पानी तो नहीं है कोरोना के महामारी बनने की असली वजह
-नीदरलैंड के वैज्ञानिकों ने हाल ही अपने शोध में पाया कि कई वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट में कोरोना वायरस के ट्रेस पाए गए हैं-अभी तक वैज्ञानिकों को कोरोना वायरस के महामारी के रूप में फैलने को लेकर पुख्ता सुबूत नहीं मिल सके हैं
कहीं सीवेज का संक्रमित पानी तो नहीं है कोरोना के महामारी बनने की असली वजह
कोरोना परिवार के सातवां सदस्य कोविड-19 वायरस के महामारी के रूप में फैलने का स्पष्ट कारण अब तक नहीं बता पाए हैं। लेकिन हाल ही नीदरलैंड्स के वैज्ञानिकों के एक दल ने अपने शोध में पाया कि वायरस केफैलने का एक कारण वॉटर सीवेजट्रीटमेंट प्लांट हो सकते हैं। उन्हें शोध के दौरान कुछ सीवेज प्लंट्स में कोरोना वायरस के निशान मिले हैं।वैज्ञानिकों का कहना है कि इस विधि का इस्तेमाल कोरोनोवायरस का पता लगाने के लिए भी किया जा सकता है। अब तकए शोधकर्ताओं ने नीदरलैंडए संयुक्त राज्य अमेरिका और स्वीडन में वायरस के निशान पाए हैं। इस शोध को आधार मानकर अब दुनियाभर के एक दर्जन से अधिक अनुसंधान समूहों ने ्रसंक्रमण केफैलने का अनुमान लगाने के लिए प्रदूषित जल स्रोतो का विश्लेषण करना शुरू कर दिया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ज्यादातर देशों में इनका परीक्षण नहीं किया जाएगा।
उपयोग किया गए पानी को पुन: उपयोग लायक बनाने के लिए उसे ट्रीटमेंट प्लांट में फिर से साफ किया जाता है। वैज्ञानिकों की नजर मेंयह एक कारगर तरीका हो सकता है जहां कोविड-१९ वायरस को ट्रैक किया जा सकता है्र। क्योंकि कोरोनापरिवार का सदस्य सार्स-साओवी-२ भी आमतौर पर मूत्र या मल में ही पनपते हैं। नीदरलैंड के न्यूवेजीन में केडब्ल्यूआर वॉटर ट्रीटमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट में माइक्रोबॉयोलॉजिस्ट गेर्टजन मेडेमा का कहना है कि एक ट्रीटमेंट प्लांट एक मिलियन यानी 10 लाख से भी अधिक लोगों के दूषित पानी का स्रोत हो सकता है। इस पैमाने पर प्रभावी निगरानी इस बात का बेहतर अनुमान दे सकती है कि कोरोनोवायरस के स्रोत का परीक्षण करने के लिए शोध का दायरा कितना बड़ा होना चाहिए। मेडेमा वही माइक्रोबॉयोलॉजिस्ट हैं जिन्होंने नीदरलैंड्स के वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट में सार्स-कोविड-02 वायसरस के आरएनए का पता लगाया था। मेडेमा का कहना है कि स्वास्थ्य अधिकारी अब भी केवल वायरस की ऊपरी सतह ही खरोंच रहे हैं जबकि मुसीबत इससे कहीं बड़ी और जटिल है।
शोध अभी शुरुआती स्तर पर शोधकर्ताओं का कहना है कि नया कोविड-19 कोरोनावायरस नए प्रकोप का बीज भी हो सकता है। हालांकि अपशिष्ट जल के नमूनों से आबादी में संक्रमण के पैमाने को निर्धारित करने के लिए, शोधकर्ताओं का कहना है कि समूहों को यह पता लगाना होगा कि मल में कितना वायरल आरएनए उत्सर्जित होता है और अपशिष्ट जल के नमूनों में वायरल आरएनए की सांद्रता से आबादी में संक्रमित लोगों की संख्या को बढ़ाता है। नॉट्रे डैम, इंडियाना विश्वविद्यालय में प्रयोगशाला के एक पर्यावरण इंजीनियर काइल बिब्बी का कहना है कि वायरस पर नजर रखने के कुछ प्रयास विश्वविद्यालय और प्रयोगशाला के शट डाउन और परीक्षण करने के लिए लैबसामग्री न होने के कारण रोक दिए गए हैं।
नीदरलैंड्स नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पब्लिक हेल्थ एंड बिल्वेनथ में संक्रामक रोग शोधकर्ता एना मारिया डी रोदा हुसैन का कहना है कि नए सीओवीआईडी-19 वायरस वर्तमान दुनिया को भविष में होने वाली ऐसी अन्य महामारियों के प्रति सतर्क करने के लिए प्रारंभिक चेतावनी उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। संस्थान कोरोना वायरस से पहले नोरोवायरस, एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया, पोलियो के वायरस और खसरे के प्रकोप का पता लगाने के लिए सीवेज का शोध करने में योगदान दिया है।
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