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स्वास्थ्य

क्राउड फंडिंग के भरोसे दुर्लभ बीमारियों से लड़ाई

-देश में अब तक करीब 14 हजार से अधिक लोगों में ऐसे रोगों की पहचान, अधिकांश बच्चे

-सरकार ने नीति बनाई, 50 लाख तक की मदद का प्रावधान

नई दिल्लीOct 17, 2024 / 12:21 pm

Shadab Ahmed

शादाब अहमद

नई दिल्ली। देश में करीब 14 हजार से अधिक लोगों में दुर्लभ बीमारियों की पहचान हो चुकी है। इनसे लड़ाई के लिए सरकार ने नीति बनाई, बजट भी निर्धारित किया, लेकिन क्राउड फंडिंग के भरोसे ही अधिकांश काम है। इसके अलावा राजस्थान के कई मरीजों के परिजनों को जयपुर में दवाएं व इंजेक्शन मिलना बंद हो गया है। ऐसे में उन्हें अब दिल्ली तक का फेरा लगाना पड़ रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आजीवन चलने वाली बीमारियों को दुर्लभ बीमारियों को श्रेणी में रखा है। यह प्रति 1,000 लोगों में से 1 या उससे कम को प्रभावित करती हैं। भारत में करीब 55 चिकित्सा स्थितियों को दुर्लभ बीमारियों के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इनमें जिनमें गौचर रोग, लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर, टायसोनेमिया, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के कई रूप शामिल है। ऐसा बताया जाता है कि दुर्लभ बीमारियों के लिए 5 फीसदी से भी कम उपचार उपलब्ध हैं, जिसके चलते 10 में से केवल 1 मरीज को रोग-विशिष्ट देखभाल मिलती है। साथ ही इलाज की लागत भी बहुत ज्यादा आती है। यही वजह है कि दिल्ली हाइकोर्ट के निर्देश पर केन्द्र सरकार ने 2021 में राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति बनाकर पीडि़त रोगों को वित्तीय मदद देनी शुरू की। हालांकि यह मदद भी कम साबित हुई और सरकर को भी क्राउड फंडिंग का सहारा लेना पड़ा है। वहीं वित्तीय मदद लेना भी पीडि़तों के लिए आसान नहीं है। यही वजह है कि वो बार-बार कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हैं।

पोर्टल पर कर सकते हैं दान

केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार मंत्रालय ने दुर्लभ बीमारियों के रोगियों की मदद के लिए अलग से पोर्टल बना रखा है। यहां करीब 2342 मरीजों का रजिस्ट्रेशन हुआ है। इनमें से 50 मरीज ऐसे हैं, जिनको तत्काल मदद की दरकार है। राजस्थान के जोधपुर एम्स में 116 और भोपाल के एम्स में 20 मरीजों का रजिस्ट्रेशन है। मरीजों के फोटो, उनके परिजनों के मोबाइल नंबर, पते, बीमारी का नाम, उपचार की अनुमानित लागत, बैंक विवरण की जानकारी उपलब्ध है। दानदाता अपने अनुसार उपचार केन्द्र और रोगियों के उपचार को चुन सकते हैं।

दुर्लभ बीमारियों के रूप

दुर्लभ बीमारियों के उपलब्ध इलाज विकल्पों की प्रकृति और जटिलता के आधार पर तीन समूहों में विभाजित किया है।

1. समूह 1: जिनका इलाज एक बार के उपचार से किया जा सकता है।
2. समूह 2: जिनके लिए दीर्घकालिक या आजीवन उपचार की आवश्यकता। यह अपेक्षाकृत कम महंगे होते हैं, लेकिन रोगियों को नियमित जांच की आवश्यकता

3. समूह 3: जिनके लिए प्रभावी उपचार उपलब्ध हैं, लेकिन वे महंगे होते हैं और अक्सर जीवनभर चलते हैं।

ऐसे बढ़ता गया बजट

वित्तीय वर्ष बजट करोड़ में
2021-22 3.15
2022-23 34.99
2023-24 74.0
2024-25 24.20
उपकरण खरीद 35 करोड़

दवाओं की लागत अधिक

दुर्लभ बीमारियों की कई दवाइयां और उपचार पेटेंट के तहत आते हैं, जिससे ये बहुत महंगे होते हैं। यदि इन दवाओं को भारत में विकसित और निर्मित किया जाए, तो उनकी कीमतें कम की जा सकती हैं, लेकिन इसके लिए सरकार को कंपनियों को कर में छूट जैसी प्रोत्साहन योजनाएं देनी होंगी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने ऐसी दवाओं के लिए कस्टम, जीएसटी और आयकर कानूनों के तहत आवश्यक छूट की प्रक्रिया को 30 दिनों में पूरा करने की समय सीमा निर्धारित की है।

सांस में आती है परेशानी

जोधपुर के ज्वाला विहार में रहने वाले 15 साल का मोहित डाटावनी जन्म से ही सिस्टिक फाइब्रोसिस से पीडि़त है। उसके इलाज पर करीब साढ़े 12 लाख रुपए का खर्च बताया गया है। उनके पिता मनीष डाटावनी का कहना है कि मोहित के फेंफड़ों में बलगम फंस जाता है, जिसकी वजह से उसे सांस लेने में परेशानी होती है। जोधपुर एम्स से दवाएं निशुल्क मिलती है। घर पर नेबुलाइजर मशीन लाकर रखी हुई है।

सरकार बदलते ही जयपुर से दवाएं मिलना बंद, दिल्ली से ला रहे

नागौर जिले के लाडनू का 13 साल का मोहम्मद दानिश गौचर रोग से पीडि़त है। उसके चाचा तोशीब राहीन ने बताया कि दानिश की यह बीमारी पैदाइशी है। उसकी स्पलीन निकाली जा चुकी है। अब दवाओं के सहारे दानिश का जीवन है। इस बीमारी में बच्चे की ग्रोथ नहीं हो पाती है। इलाज पर करीब 82 लाख रुपए का खर्च बताया गया है। दानिश के पिता मोहम्मद साजिद सऊदी अरब में मजदूरी का काम करते हैं। तोशीब ने बताया कि इला•ा के लिए कानूनी लड़ाई लडऩी पड़ी। कोर्ट के आदेश के बाद दानिश समेत चुरू, कोटा, करौली, गंगानगर के गौचर रोग पीडि़त 6 बच्चों का ग्रुप बनाया गया। इन सभी को जयपुर के जेके लोन अस्पताल से निशुल्क दवाएं व इंजेक्शन मिलने शुरू हुए थे। राजस्थान में पिछले साल सरकार बदलने के बाद जेके लोन अस्पताल से दवाएं मिलना बंद हो गए। इसके बाद हमें दिल्ली के मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज से निशुल्क दवाएं व इंजेक्शन मिल रहे हैं। अब जयपुर की बजाय दिल्ली जाना पड़ रहा है।

इलाज में लगते 17 करोड़, 6 महीने की उम्र में बच्चे की मौत

भीलवाड़ा के आदर्श विहार निवासी आदित्य पारीक के पुत्र कियान पारीक को जन्म के एक महीने बाद स्पाइन मस्कुलर एट्रोपी बीमारी बताई थी। इस बीमारी के चलते बच्चे की मांसपेशियां बिल्कुल कमजोर होती है, जिसके चलते वह बैठ भी नहीं सकता है। इसके इलाज का अनुमानित खर्च करीब 17 करोड़ रुपए बताया गया। आदित्य पारीक ने बताया कि उनके बच्चे की बीमारी के चलते करीब 6 महीने की उम्र में जून महीने में निधन हो गया।

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