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स्वास्थ्य

‘फॉल्स सेंस ऑफ सेक्यूरिटी’ भी है संक्रमण का कारण

कोरोना वायरस को लेकर कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के तीन शोधकर्ताओं ने बड़ा खुलासा किया है।

Apr 15, 2020 / 07:12 am

Mohmad Imran

'फॉल्स सेंस ऑफ सेक्यूरिटी' भी है संक्रमण का कारण

‘फॉल्स सेंस ऑफ सेक्यूरिटी’ भी है संक्रमण का कारण

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के अधिकारिक ब्लॉग और बीएमजे साइंस मैगजीन में अपने संपादकीय में तीनों ने कहा है कि बड़े पैमाने पर मास्क पहनने से भी संभावित संक्रमण के होने की आशंका है। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के तीन शोधकर्ताओं का सुझाव है कि कोविड-19 महामारी के दौरान सुरक्षा के लिए कपड़े के मास्क पहनना ज्यादा बेहतर हैं।
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटीज हॉस्पिटल्स एनएचएस ट्रस्ट के संक्रामक रोग सलाहकार और शोधकर्ताओंमेंसे एक बाबाक जाविद का कहना है कि कोरोना वायरस बिना लक्षण दिखाए भी कोरोनवायरस फैल सकता है। मास्क इससे बचने में हमारी मदद करते हैं लेकिन पिछले सप्ताह व्यापक स्तर पर मास्क पहनने औरन पहनने को लेकर काफी बहस हुई है। पिछले हफ्ते अमरीकी सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने भी बहस छोड़कर कपड़े के मास्क के इस्तेमाल की वकालत की।
'फॉल्स सेंस ऑफ सेक्यूरिटी' भी है संक्रमण का कारण
फेस मास्क के खिलाफ अक्सर तीन प्रमुख तर्क प्रस्तुत किए जाते हैं- पहला कि इस बात के कोई सबूत नहीं है कि वे वायरस से बचाते हैं, दूसरा बड़े पैमाने पर मास्क का उपयोग करने से ये मूल्यवान संसाधन फ्रंटलाइन हेल्थकेयर कर्मियों को कम पड़ जाते हैं और वे पहनने वाले में सुरक्षा की भ्रामक भावना पैदा करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अन्य महत्वपूर्ण स्वच्छता उपायों का पालन कम हो जाता है।
शोधकर्ताओं ने लिखा है आंकड़ों से पता चलता है कि कपड़े का मास्क दूषित कणों के उत्सर्जन को रोकने में सर्जिकल मास्क की तुलना में 15 फीसदी कम प्रभावी होता है लेकिन MASK न पहनने पर यह 5 गुना अधिक प्रभावी होता है। इसलिए मास्क न पहने से बेहतर है कपड़े के मुखौटे पहनना। लेकिन परेशानी यह है कि आम जनता यह नहीं समझ पा रही है कि फेस मास्क को सुरक्षित रूप से कैसे इस्तेमाल किया जाए और विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि फेसमास्क खतरनाक संक्रमण भी दे सकते हैं।
'फॉल्स सेंस ऑफ सेक्यूरिटी' भी है संक्रमण का कारण
यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ हैम्प्टन के विलियम कीविल ने हाल ही में व्यापक मास्क पहनने के खिलाफ सलाह दी है। वे कहते हैं कि वायरस नाक या मुंह से न जा सकें तो वह आंखों और कान के जरिए भी शश्रीर में प्रवेश कर सकता है क्योंकि वास्तव में हम इन्हें मास्क से नहीं ढक पाते। ऐसे ही ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के एक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल विशेषज्ञ ट्रिश ग्रीनहलग का कहना है कि आम जनता फेस मास्क का सही इस्तेमाल कैसे करना नहीं जानती। ‘फॉल्स सेंस ऑफ सेक्यूरिटी’ भी इसका एक कारण हैँ। निकोलस मैथेसन कैम्ब्रिज इंस्टीट्यूट ऑफ चिकित्सीय इम्यूनोलॉजी और संक्रामक रोग से और संपादकीय के लेखकों में से एक व्यापक मास्क पहनने के व्यापक मनोवैज्ञानिक प्रभाव को भी इंगित करते हैं। मास पब्लिक मास्क पहनने की सरल दृष्टि महामारी के मूल्यवान दृश्य अनुस्मारक के रूप में काम कर सकती है।
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