हजारीबाग। लोहरदगा जिला के पठारी क्षेत्र में एक ऐसी जनजाति बसती है, जो आज भी अपने उत्त्थान के लिए राह देख रही है। बिरहोर जनजाति आज भी संघर्ष कर रही है। यहां के निवासी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। बिरहोर परिवार जंगल की लकड़ी और जाल बुनकर अपना जीवन यापन करते हैं।
बता दें कि पठार की गोद में बसे किस्को प्रखंड के सेमरडीह गांव में 12 परिवार आदिम जनजाति के हैं, जो नदी के किनारे कच्चे मकान में रहकर अपने बाल बच्चों का लालन पालन कर रहे हैं। पूर्व केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश भी इनके बीच पहुंच कर इन्हें उत्थान का आश्वान दे चुके हैं।
इसके बाद भी इनके उत्थान के लिए कोई कार्य नहीं किया गया। कई मंत्री, विधायक और प्रशासनिक पदाधिकारी पहुंच चुके हैं, लेकिन आज भी यह परिवार शाम होते ही अंधेरे में डूब जाते हैं। गांव की कच्ची सड़के इन्हें पीछे होने का अहसास कराती हैं। पूरा गांव साल भर जमीन में सोता है, क्योंकि इनके पास लेटने के लिए पलंग तक नहीं है।
जानकारी के अनुसार कभी इन्हें पत्तल बनाने की मशीन दी गई थी, लेकिन वह भी लाखों रुपए के लोन पर, हालांकि मशीन सफल नहीं हुई। रामरेंगा महिला मंडल और सोनी महिला मंडल से जुड़ी 20 बिरहोर महिलाएं लाखों रुपए के कर्ज में डूब गईं। सैकड़ों बार आश्वासन के झूठे वादे सुन चुके ये परिवार अब किसी के आगमन पर भी भड़क उठते हैं।
इनके जीवन स्तर में तो कोई बदलाव नहीं होने से अब इन्हें अपने ही देश में रहकर खुशी नहीं हो रही है। लोहरदगा में बिरहोर परिवार की दयनीय स्थिति के बारे में डीसी ने गंभीरता दिखाते हुए कहा कि इनके उत्थान के दिशा में हरसंभव कदम उठाया जा रहा है। सरकार के निर्देशों के अनुसार हर सुविधा और लाभ देने की दिशा में काम हो रहा है। लोहरदगा जिला का पठार इलाका आदिम जनजातियों के वास के लिए जाना जाता है, लेकिन यह क्षेत्र अब भी विकास से कोसों दूर है।
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