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ग्वालियर

सिंधिया खेमे को अपनों के टिकट काटने का फॉर्मूला मंजूर नहीं!

– बैठक में सिंधिया के नहीं आने ने कथित नाराजगी की अटकलों को बल दिया है- शिवराज ने नरेंद्र सिंह व पवैया से की मंत्रणा- सिंधिया खेमा हुआ ज्यादा चौकन्ना

ग्वालियरMay 21, 2023 / 02:59 pm

दीपेश तिवारी

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मध्यप्रदेश में होने वाले विधान सभा चुनाव 2023 की तैयारियों के बीच भाजपा का एक खेमा नाराज दिख रहा है। दरअसल सिंधिया समर्थक विधायक जो ढाई साल पहले उपचुनाव में हार गए थे, उनका टिकट काटने के फार्मूले से ये खेमा खुश नहीं है। सूत्रों की मानें तो ज्योतिरादित्य सिंधिया कमलनाथ सरकार का तख्तापलट कर शिवराज सरकार की वापसी में अहम भूमिका निभाने वाले अपने उन सभी समर्थक विधायकों के लिए 2023 के चुनाव में टिकट चाहते हैं, जो मार्च 2020 में कांग्रेस छोड़कर उनके साथ भाजपा में आए थे। दरअसल प्रदेश में सत्तापक्ष की वीथिकाएं उस समय एकदम से गरमा गई जब पिछले दिनों राजधानी में चुनावी तैयारियों का खाका खींचने के लिए आयोजित भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में सिंधिया की अनुपस्थित दिखे। इससे सिंधिया की कथित नाराजगी की अटकलों को और बल मिला है।

वहीं इसी दौरान सिंधिया खेमा उस समय ज्यादा चौकन्ना हो गया जब ग्वालियर-चंबल की राजनीति में सिंधिया से दूरी रखने वाले केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया के शिवराज सिंह के साथ एक ही कार में बैठक में पहुंचे।

ऐसे में यह खेमा कांग्रेस सरकार के तख्तापलट के दौर में भाजपा में शामिल होने वाले सभी विधायकों के चुनावी हितों की रक्षा के लिए लामबन्द हो गया है। ज्ञात हो कि उपचुनाव में मुन्नालाल गोयल,इमरती देवी, गिर्राज दण्डौतिया, रघुराज सिंह कंसाना, रणवीर जाटव जैसे सिंधिया समर्थक विधायक चुनाव में पराजित हो गए थे। इस कारण कांग्रेस छोडने के बाद इनकी विधायकी भी चली गई थी।

सिंधिया खेमे ने अपनी विधायकी व मंत्री पद गंवाने को प्रदेश में भाजपा सरकार की पुनस्र्थाापना के लिए अपनी कुर्बानी के रूप में बताया था। भले ही इसके बाद शिवराज सरकार ने इन सभी पराजित विधायकों को निगम-बोडों का अध्यक्ष बनाकर मंत्री का दर्जा देते हुए पार्टी व सरकार के प्रति उनके योगदान का प्रतिसाद देने की कोशिश की, लेकिन इन सभी पराजित विधायकों का मानना है कि निगम बोर्ड का अध्यक्ष बनाने मात्र से 2023 के विधानसभा चुनाव में टिकट पर उनका दावा खत्म नहीं हो जाता है।

इस पूरे मामले में सबसे खास बात यह है कि इन सभी पूर्व विधायकों ने अपने-अपने क्षेत्रों में चुनाव लडने को तैयारियां भी तेज कर दी हैं। वहीं भाजपा द्वारा इन दिनों चलाए जा रहे बूथ संपर्क अभियान में भी ये नेता अपनी सक्रियता का अहसास करा रहे हैं।

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अपुष्ट सूत्रों की मानें तो भाजपा के नीति निर्धारकों के पास इस तरह की सूचनाएं भी पहुंची हैं कि भाजपा का टिकट न मिलने की परिस्थितियां निर्मित होने पर इनमें से कुछेक पूर्व विधायक तीसरी ताकत वाले आम आदमी और बसपा जैसी पार्टियों में भी अपने संपर्क सूूत्र विकसित कर रहे हैं।
राजनीतिक जमीन पर पकड़ मजबूती के लिए तीन दिन का दौरा-
इसी राजनीतिक सरगर्मी के बीच सिंधिया आज रविवार से तीन दिन के लिए ग्वालियर व अपने पारंपरिक संसदीय क्षेत्र शिवपुरी-गुना में डेरा डालने जा रहे हैं। इन तीन दिनों में वे ग्वालियर के अलावा नरवर, दिनारा, कोलारस, अशोकनगर, मुंगावली आदि जगह जाएंगे और ग्वालियर, शिवपुरी व गुना में अपने समर्थकों से मिलेंगे। ऐसे में सियासी तौर पर सिंधिया के इस दौरे को महत्वपूर्ण माना जा रहा है, राजनीति के जानकारों की मानें तो सिंधिया भविष्य की चुनौतियों के चलते अपनी पुरानी राजनीतिक जमीन पर पकड़ मजबूत बनाए रखना चाहते हैं।
सिंधिया का ट्विटर अकाउंट फिर से चर्चा में –
वहीं इन सब चर्चाओं से इतर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कथित तौर पर अपने ट्विटर अकाउंट से बीजेपी हटा दिया है। ऐसा कहा जा रहा है कि बीजेपी की जगह अब उन्होंने अपने अकाउंट पर पब्लिक सर्वेट लिखा है। जिसके बाद से ही प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई, दरअसल मप्र युवक कांग्रेस ने अपने ट्विटर हैंडेल का इस्तेमाल कर ट्वीट किया कि सिंधिया ने अपने ट्विटर बायो से बीजेपी हटा दिया है।
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हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि सिंधिया ने अपने प्रोफाइल में कभी बीजेपी जोड़ा ही नहीं था, वहीं सिंधिया खेमे की ओर से दलील दी जा रही है कि कई केंद्रीय मंत्री अपने ट्विटर प्रोफाइल के बायो में पार्टी का नाम नहीं लिखते है, जैसे गृह मंत्री अमित शाह, रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव या केंद्रीय मंत्री अश्विनी चैबे व अन्य किसी ने भी पार्टी का जिक्र अपने ट्विटर के बायो में नहीं किया है.

किसने क्या कहा…
सिंधिया को कांग्रेस ने सब कुछ दिया, जब वेे कांग्रेस के नहीं हो सके तो भाजपा के क्या होंगे। उन्होंने जिन परिस्थितियों में कांग्रेस की सरकार गिराई, वह राजनीति का काला अध्याय है। ढाई वर्ष पूर्व उन्होंने राजनीति में आगे बढने का जो रास्ता चुना, उसकी परिणति का अनुमान लगाया जा सकता है।
– लाखन सिंह यादव, विधायक व पूर्व मंत्री, कांग्रेस

चुनावी माहौल में कई तरह की अफवाहें उडाई जाती हैं एवं असत्य तथ्यों पर आधारित अटकलें लगाई जाती हैं। आज विपक्षी खेमे से सिंधिया को लेकर जो दावे प्रतिदावे किए जा रहे हैं, उन्हें गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है, क्योंकि ये चुनावी प्रोपेगंडे का हिस्सा है।
– डॉ. केशव पांडे, सिंधिया परिवार से जुड़े विश्लेषक

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