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ग्वालियर

बड़ा चमत्कारी है ये इमली का पेड़, पत्तियां खाते ही सुरीली हो जाती है भद्दी से भद्दी आवाज

सुर सम्राट तानसेन के मकबरे पर लगे इस इमली के पेड़ से संगीत प्रेमियों की गहरी आस्था जुड़ी है। मान्यता है कि इसकी पत्तियों और छाल का सेवन करने से आवाज सुरीली हो जाती है।

ग्वालियरDec 24, 2023 / 06:58 pm

Faiz

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बड़ा चमत्कारी है ये इमली का पेड़, पत्तियां खाते ही सुरीली हो जाती है भद्दी से भद्दी आवाज

ठंड के दिनों में सर्दी, जुकाम और खांसी के साथ साथ आवाज लगने जैसी समस्याओं होना लोगों में आम सी बात है। इसके निवारण के लिए लोग डॉक्टरी इलाज के साथ साथ कई तरह के घरेलू उपचार करते हैं। सर्दी जुकाम के बीच आवाज लगना स्वभाविक सी बात है। इसी बीच हम आपको मध्य प्रदेश के ग्वालियर में स्थित तानसेन मकबरे के पास लगे एक चमत्कारी इमली का पेड़ के बारे में बता रहे हैं, जिसकी पत्तियां खाने या उनका रस पान करे से न सिर्फ सर्दी जुकाम में लाभ होता है, बल्कि लगी हुई आवाज ठीक होना तो दूर आवाज एकदम सुरीली हो जाती है। खासतौर पर संगीत प्रेमी इस पेड़ की पत्तियों का सेवन करते हैं। क्योंकि मान्यता है कि इससे उनकी आवाज सुरीली हो जाती है।

आपको बता दें कि ये इमली का पेड़ सुरों के सम्राट तानसेन के मकबरे के पास लगा है। ऐसा कहा जाता है कि तानसेन इसी पेड़ के नीचे बैठकर संगीत का रियाज किया करते थे। वो इसी पेड़ के नीचे बैठकर ध्रुपद के राग का रियाज किया करते थे। कहा ये भी जाता है कि तानसेन इसी इमली के पेड़ के पत्ते खाकर अपनी आवाज को सुरीला करते थे। बाद में कई गायकों ने भी इसी इमली के पत्ते खाकर अपनी आवाज को सुरीला किया और संगीत की दुनिया में नाम कमाया। विख्यात गायक केएल सहगल और गजल गायक पंकज उदास समेत कई गायकों ने भी इसी मकबरे पर लगे इमली के पत्ते खाए हैं।

 

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तानसेन का प्रसाद मानकर ग्रहण करते हैं संगीत प्रेमी

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संगीत सम्राट तानसेन के मकबरे पर लगा ये इमली संगीत प्रेमियों के लिए बड़ी आस्था का केंद्र रहता है। मान्यता है कि इसी इमली के पत्ते और छाल खाने से गला सुरीला होता है। यही कारण है कि पहले इस जगह बड़ा पेड़ हुआ करता था, लकिन उसकी लोकप्रीयता बढ़ने पर लोग उसकी पत्तियां और छाल तो छोड़िए जड़ें तक अपने साथ ले गए। कई सौ साल पुराना पेड़ जब सूखकर खत्म हो गया तो यहां आने वाले संगीत प्रेमी निराश हो गए। लिहाजा उसी स्थान पर दौबारा इमली के पेड़ को जिंदा किया गया। इतिहासकारों की मानें तो इस जगह तानसेन का आज भी वास है। दूर-दूर से संगीतप्रेमी यहां आते हैं और इमली के पत्तों को तानसेन का प्रसाद मानकर ग्रहण भी करते हैं और उसे अपने साथ भी ले जाते हैं।

 

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क्या कहते हैं इतिहासकार ?

इस संबंध में इतिहासकार हितेंद्र भदौरिया का कहना है कि ऐसी मान्यता है संगीत सम्राट तानसेन की समाधि पर लगे इमली के इस पेड़ में उनकी रूह बसती है। जो भी इस पेड़ की पत्तियां खाता है उसकी आवाज सुरीली हो जाती है। यही कारण है कि तानसेन की समाधि स्थल पर आने वाले लोग इस पेड़ की पत्तियों को प्रसाद के रूप में खाते हैं। संगीत प्रेमियों की माने तो इस पेड़ से उनकी गहरी आस्था है। पुराना पेड़ कई सौ साल पुराना होने के बाद गिर गया था। अब नए पेड़ में एक बार फिर पत्तियां आ गई हैं, जिसके चलते संगीतप्रेमियों का यहां आकर पत्तियां ले जाने का सिलसिला एक बार फिर शुरु हो गया है।

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