ग्वालियर। विश्व के सबसे बड़े संगीत समारोह तानसेन समारोह की शुरूआत 16 दिसंबर की शाम से होने जा रही है। क्लासिकल म्यूजिक का ये नामचीन कॉन्सर्ट अपने आप में खास है। तानसेन समारोह 92 साल का हो गया है। सिंधिया रियासत में शुरू किए गए इस समारोह का रूप व स्वरूप पूरी तरह बदल चुका है। तानसेन समारोह 2016 में ग्वालियर घराने के मूर्घन्य गायक एलके पंडित को तानसेन अलंकरण से सम्मानित किया जाएगा। इस मौके पर उन्होंने पत्रिका ने बात की और समारोह से जुड़े कुछ बातें शेयर की।
1926 से शुरू हुई सम्मान की पंरपरा, 1980 से तानसेन अलंकरण
मध्यप्रदेश शासन द्वारा तानसेन अलंकरण की पंरपरा 1980 से शुरू हुई। इससे पहले सिंधिया रियासत में भी सम्मान की पंरपरा थी। सिंधिया स्टेट में 1926 से समारोह में सम्मान की शुरूआत हुई। इसके लिए शहर के प्रमुख लोगों से ये आग्रह भी किया गया था, कि वे इसमें सहयोग करें। 1926 की ये ग्वालियरी पंरपरा को मध्यप्रदेश शासन ने 1980 में तानसेन अलंकरण का नाम दिया और ये आज भी अपनी पंरपरा के साथ चल रही है।
ऐसे होता था आकाशवाणी से प्रसारण
आजादी से पहले समारोह का प्रसारण ऑल इंडिया रेडियो स्टेशन से पूरे देश के साथ विदेशों में भी किया जाता था। इस प्रसारण के लिए आवाज को माइक्रोफोन से आवाज को बाहर रखे यंत्रों तक पहुंचाया जाता था,फिर यहां से आवाज टेलिफोन के तारों से होकर लश्कर के टेलिफोन एक्सचेंज पहुंचती थी और वहां से दिल्ली भेजी जाती थी।
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राजा मानसिंह ने खोला था पहला म्यूजिक स्कूल
ग्वालियर में महाराजा मानसिंह ने पहला म्यूजिक स्कूल खोला था। उन्हीं के नाम पर मध्यप्रदेश सरकार ने ग्वालियर में प्रदेश का पहला संगीत एवं कला विश्वविद्यालय स्थापित किया है। जो पाठशाला मानसिंह तोमर ने स्थापित की थी उसमें तानसेन जैसे छात्र ने शिक्षा ग्रहण की।
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कमेटी करती थी आयोजन
आजादी से पहले तानसेन समारोह का आयोजन तानसेन समारोह कमेटी द्वारा किया जाता था। दौर बदले और समारोह भी। अब इस समारोह का जिम्मा सरकार का है। इस पूरे दौर में नहीं बदला तो समारोह की प्रतिष्ठा और कलाकारों के मन में इसके लिए सम्मान।
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