ग्वालियर। आश्विन मास के नवरात्र 1 अक्तूबर, शनिवार से आरंभ हो चुके हैं, जो 10 अक्तूबर तक चलेंगे। इस दौरान प्रतिपदा 1 व 2 अक्तूबर को रही, इस कारण इस बार नवरात्र बढ़ कर 10 हो गए हैं।
आादिशक्ति के 9 स्वरूपों की आराधना का यह पर्व प्रथम तिथि को कलश स्थापना से आरंभ होता है। नवरात्र के नौ दिनों में माता के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं।
शास्त्रों में दुर्गा के नौ रूप बताए गए हैं। इस नवरात्र में श्रद्धालु अपनी शक्ति, सामथ्र्य और समयानुसार व्रत कर सकते हैं।
कई भक्त पूरे नौ दिन व्रत रखकर दुर्गा पूजन करते हैं। संपूर्ण नवरात्र अखंड दीप जलाकर मां की स्तुति की जाती है और उपवास रखा जाता है। नवरात्र के अंतिम दिन कन्याओं को भोजन कराकर यथेष्ट दक्षिणा देकर व्रत की समाप्ति की जाती है।
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यह है नवरात्र का महत्व
नवरात्र के नौ दिनों को तीन भागों में बांटा गया है। जानकारों के अनुसार पहले तीन दिनों में तमस को जीतने की साधना, अगले तीन दिन रजस और आखिरी तीन दिन सत्व को जीतने की साधना माने गए हैं।
नवरात्र पर्व का आध्यात्मिक, धार्मिक और सामाजिक महत्व है। अध्यात्म के रूप में नवरात्र पर्व की विशेष मान्यता है। माना जाता है कि नवरात्र में किए गए प्रयास, शुभ संकल्प बल के सहारे देवी दुर्गा की कृपा से सफल होते हैं। इस पर्व के आते-आते वर्षा ऋतु क्षीण हो जाती है और धीरे-धीरे शीत ऋतु का आभास होने लगता है। इस तरह यह पर्व ऋतु परिवर्तन को भी दर्शाता है।
नवरात्र तथा प्राकृतिक खाद्य प्रदार्थ
मार्कंडेय पुराण के अनुसार देवी महात्म्य में दुर्गा ने स्वयं को शाकंभरी अर्थात साग-सब्जियों से विश्व का पालन करने वाली बताया है। देवी का एक और नाम कूष्मांडा भी है। इससे स्पष्ट है कि मां दुर्गा का संबंध वनस्पतियों से भी प्रतीकात्मक रूप से जुड़ा है। दुर्गा पूजा का मूल महत्व मातृशक्ति की पूजा है। शक्ति में सृजन की जो क्षमता होती है, उसी की हम पूजा करते हैं। शक्ति का सही रूप सृजन धर्मा है। प्रकृति अपने नारी रूप में जगत को धारण करती है, उसका पालन करती है और शक्ति रूप में संतुलन बिगडऩे पर विध्वंसकारी शक्तियों का विनाश कर सार्थक शक्ति का संचार करती है।
यह हैं नव दुर्गा नवरात्रि के विशेष दिन
1. नवरात्रि के पहले दिन : शैलपुत्री
2. नवरात्रि के दूसरे दिन: ब्रहचारिणी
3. नवरात्रि के तीसरे दिन: चंद्रघंटा
4. नवरात्रि के चौथे दिन: कुष्मांडा
5. नवरात्रि के पांचवें दिन: स्कन्दमाता
6. नवरात्रि के छठे दिन : कात्यायनी
7. नवरात्रि के सातवें दिन दिवस: कालरात्री
8. नवरात्रि के आठवें दिन: महागौरी
9. नवरात्रि के नौवें दिन: सिद्धिदात्री
नवरात्र में ऐसे करें पूजन और व्रत
नवरात्र व्रत के आरंभ में स्वस्तिक वाचन-शांति पाठ करके संकल्प करें और सर्वप्रथम भगवान श्रीगणेश की पूजा कर मातृका, लोकपाल, नवग्रह व वरुण का सविधि पूजन करें। फिर मुख्य मूर्ति का षोडशोपचार पूजन करें। दुर्गा देवी की आराधना-अनुष्ठान में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का पूजन तथा श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ नौ दिनों तक करना चाहिए। इच्छानुसार फल प्राप्ति के लिए विशेष मंत्र से अनुष्ठान करना या योग्य वैदिक पंडित से विशेष मंत्र से अनुष्ठान करवाना चाहिए।
जौ या खेतरी बीजना: नवरात्र में मिट्टी के गमले या मिट्टी की वेदी पर जौ बीज कर आम के पत्तों से ढांप दें, तीसरे दिन अंकुर निकल आएंगे। जौ नौ दिनों में बड़ी तेजी से बढ़ते हैं और इनकी हरियाली परिवार में धन-धान्य, सुख-समृद्धि की प्रतीक है।
अखंड ज्योति व पाठ
यदि संभव हो और सामर्थ्य भी हो तो देसी घी का अखंड दीपक जलाएं। इसके आसपास एक चिमनी रख दें ताकि दीपक बुझ न पाए। दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
यह है दुर्गा सप्तशती में
इसमें 700 श्लोक ब्रह्मा, वशिष्ठ व विश्वामित्र द्वारा रचित हैं, इसीलिए इसे सप्तशती कहते हैं। इसमें 90 मारण के, 90 मोहन के, 200 उच्चाटन के, 200 स्तंभन के, 60-60 विद्वेषण के कुल मिला कर 700 श्लोक हैं। यह तंत्र व मंत्र दोनों का अद्वितीय संपूर्ण ग्रंथ है। इनका दुरुपयोग न हो इसलिए, तीनों विद्वानों ने इन्हें शापित भी कर दिया। अत: पहले शापोद्धार के 20 मंत्र पढ़ कर ही दुर्गा सप्तशती का पाठ आरंभ होता है।
यह हैं मां दुर्गा की आरती के नियम
आरती के कुछ विशेष नियम होते हैं। विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि देवताओं के सम्मुख चौदह बार आरती उतारनी चाहिए। चार बार चरणों पर से, दो बार नाभि पर से, एक बार मुख पर से तथा सात बार पूरे शरीर पर से आरती करने का नियम है। आरती की बत्तियां 1, 5, 7 अर्थात विषम संख्या में ही बत्तियां बनाकर आरती की जानी चाहिए।
व्रत : पूरे नौ दिन या सप्तमी, अष्टमी या नवमी पर निराहार उपवास रखा जा सकता है। इस मध्य केवल फलाहार भी किया जा सकता है।
कन्या पूजन : अष्टमी या नवमी पर 9 वर्ष की कन्या तथा एक बालक को घर बुलाकर उनका पूजन करके भोजन करवाएं। उन्हें उचित दक्षिणा एवं उपहार सहित विदा करें।