अगर हम देखें, तो व्यक्तित्व विकास के लिए जरूरी है कि हम अधिक से अधिक लोगों से मिलें, उन्हें जाने और उनसे जुड़ें। इन सबके लिए मैं स्कूल-कॉलेज में छात्रों की फिजिकल प्रजेंस जरूरी मानता हूं। डिजिटल शिक्षा का मतलब है कि आपको न केवल स्कूल में बल्कि घर में भी उचित आधारभूत संरचना चाहिए। पारंपरिक कक्षा प्रशिक्षण में सब कुछ एक निश्चित समय सारिणी के अनुसार होता है। ऑनलाइन सीखने के लिए बेहतर प्रबंधन और कठोर अनुशासन चाहिए। इतना ही नहीं इंटरनेट की पढ़ाई से बच्चों की रचनात्मक क्षमता में कमी आती है।
आज कई लोग इंटरनेट पर आधारित शिक्षा का समर्थन कर रहे हैं, वे इसे पूरी तरह से लागू करने की बात कर रहे हैं, लेकिन क्या आपने सोचा है कि डिजिटल शिक्षा बच्चों के पढ़ाई के बुनियादी तरीके को भुला सकती है। यहां तक की बच्चे साधारण समस्याओं और होमवर्क के लिए भी नेट पर निर्भर हो जाएंगे। इसके साथ ही अभी भारत का इंफ्रास्ट्रक्चर ऑनलाइन एजुकेशन के लिए तैयार नहीं हैं। अभी भी गांवों और कस्बों में 24 घंटे बिजली आपूर्ति नहीं होती। इंटरनेट का उपयोग कम ही लोग कर रहे हैं। फिरभी इस समय संक्रमण रफ्तार पकड़ रहा है। एेसे में कोई और विकल्प हमारे पास नहीं है, लेकिन जब भी सिचुएशन सुधरेगी, तब बच्चों को ऑफलाइन की तरफ मोडऩा होगा।
मैं पेपरलेस और पेनलेस शिक्षा में उपयोग ज्यादा सही मानता हूं, लेकिन अभी की स्थिति में सम्पूर्ण ऑनलाइन शिक्षा से भारत अभी एक दशक दूर है। इसलिए हम ऑनलाइन शिक्षा को ही पूर्ण न मानें, भारतीय स्थिति को देखते हुए यह क्लासरूम शिक्षा का परिस्थितिजन्य विकल्प है न कि शिक्षा स्कूल-कॉलेज का पूर्ण समाधान। यह चीज हमें समझना होगा।