शासकीय अधिवक्ता जगदीश प्रसाद शर्मा ने न्यायालय में कहा कि जीडीए का आवेदन स्वीकार योग्य नहीं हैं, क्योंकि प्रारंभिक स्तर पर जीडीए पक्षकार नहीं था। पूर्व में व्यवहार न्यायालय द्वारा गंगाप्रसाद शर्मा व अन्य विरुद्ध शकुंतला देवी मामले में वह पक्षकार क्यों नहीं बना, इसका कोई युक्तियुक्त कारण जीडीए नहीं बता सका है, इसलिए जीडीए का आवेदन सद्भावना आधारित नहीं होने से प्रकरण लंबित करने के लिए प्रस्तुत किया गया है।
प्राधिकरण ने अधिनस्थ न्यायालय, अपीलीय न्यायालय, उच्च न्यायालय तथा सर्वोच्च न्यायालय में भी पक्षकार बनने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की थी। शासन ने कहा कि विद्या विहार जो कि विवादित कॉलोनी है, उसे जिस जमीन पर बसाने के प्रयास किए गए हैं, वह शासकीय संपत्ति होकर राजस्व अभिलेख में पीडब्ल्यूडी के स्वामित्व के रूप में दर्ज है। इस कारण इसमें रिस्पोंडेंट व अपीलार्थी के बीच स्वत्व के निराकरण के लिए विवाद तय है।
यदि जीडीए व अन्य रिस्पोंडेंट द्वारा कोई दस्तावेज अथवा कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर कार्यवाही की हो तो उससे प्रकरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। प्रकरण का निराकरण जीडीए के बिना भी किया जा सकता है। प्रकरण में अपीलीय स्टेज पर अंतिम बहस होकर निराकरण होना है, इस कारण जीडीए को पार्टी बनाया जाना आवश्यक नहीं है।
शासन ने किया खंडन
शासन ने इसे गलत बताया है कि वादग्रस्त संपत्ति प्राधिकरण ने मध्यप्रदेश नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम 1973 के तहत अधिग्रहित की थी। इसे भी गलत बताया कि इस संबंध में 25 अक्टूबर 1996 को विद्यानगर गृह निर्माण सहकारी समिति के साथ अनुबंध हुआ था। यह जमीन पीडब्ल्यूडी की है, इस कारण जीडीए व अन्य को इस जमीन के स्वत्व संबंधी दस्तावेज संपादित करने का कोई अधिकार नहीं है।
सर्वोच्च न्यायालय से शासन को राहत
सिटी सेंटर में कलेक्ट्रेट के सामने 200 बीघा जमीन पर बन रही विद्या विहार कॉलोनी मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मध्यप्रदेश शासन की विशेष अनुमति याचिका स्वीकार कर अपर जिला न्यायालय को प्रकरण फिर से सुनने के आदेश दिए हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने विलंब के आधार पर शासन को पराजित कर देने के प्रकरण के महत्व को देखकर अपर जिला न्यायालय को गुण-दोष के आधार पर प्रकरण का निराकरण करने के आदेश दिए हैं।
जानबूझकर प्रकरण लटकाने के प्रयास
दरअसल इस जमीन पर बड़े लोगों के प्लॉट होने से जानबूझकर शासन का पक्ष सही तरीके से नहीं रखा गया, वहीं अपील करने में भी विलंब कराया गया। अब फिर विलंब करने के प्रयास किए जा रहे हैं।