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ग्वालियर

जब खुद आकर शहनाई बजाने लगे उस्ताद बिस्मिला खां, तानसेन समारोह की ऐसी ही 15 बातें जो आप नहीं जानते

तानसेन समारोह से पहले हम आपको कुछ ऐसी बाते और पहलुओं से रूबरू करा रहे हैं, जो शायद आप न जानते हो। जानिए ऐसे ही 15 फैक्ट-

ग्वालियरDec 19, 2017 / 04:23 pm

shyamendra parihar

ग्वालियर। पूरे विश्व में सबसे अनोखा माने जाना वाला तानसेन समारोह हर साल संगीत सम्राट तानसेन की याद में ग्वालियर में मनाया जाता है। इस बार भी ये भव्य समारोह 22 दिसंबर से ग्वालियर में शुरू होने जा रहा है। समारोह से पहले हम आपको इतिहास के पन्नों से कुछ ऐसी बाते और पहलुओं से रूबरू करा रहे हैं, जो शायद आप न जानते हो। जानिए ऐसे ही 15 फैक्ट-

1- 92 पहले 1924 में सिंधिया स्टेट के महाराजा माधवराव प्रथम ने शुरू की थी ये पंरपरा
2- तीन दशक पहले उस्ताद बिस्मला खां शहर में एक शादी में शामिल होने आए थे, उन्हें पता चला कि तानसेन समारोह चल रहा है तो वो खुद बिना किसी बुलावे के वहां पहुंच गए और शहनाई वाद प्रस्तुत किया।
3- मशहूर गायक केएल सहगल साहब तानसेन के मकबरे पर खास तौर से यहां के इमली के पेड़ की पत्तियां खाने आए थे। ये बात 1940 है। तानसेन के मकबरे पर इमली के पेड़ की पत्तियों का जादू ही कुछ ऐसा था कि संगीत जगत के बड़े-बड़े फनकार यहां पत्तियां खाने आते थे। कहा जाता है कि इस पेड़ की पत्तियां खाने से गला सुरीला हो जाता है।
4- अटल बिहारी वाजपेई और दलाई लामा भी बन चुके है इस शानदार समारोह के गवाह।
5- तानसेन समारोह में शुरूआती सालों में संगीत के साथ नृत्य का प्रदर्शन भी होता था और यहां तवाइफें भी प्रस्तुति देने आती थी।
93 साल पहले इस सिंधिया शासक ने शुरू कराया था तानसेन समारोह,तवायफें भी देती थीं प्रस्तुती


6- प्रदेश में सबसे बड़ा मकबरा है तानसेन का। यहां तानसेन के अलावा उनके गुरु और पीर मोहम्मद गौस साहब का भी मकबरा है।
7- तानसेन समारोह 2016 में सबसे खास प्रस्तुति उस्ताद अमजद अली खां की रही। उन्होंने करीब 20 साल के बाद एक बार तानसेन समारोह में प्रस्तुति दी।
8- 1924 में शुरू हुए इस समारोह का आयोजन चंदे से होता है। शुरूआत में एक कमेटी इसके आयोजन का इंतजाम देखती थी।
9- 1980 के बाद तानसेन अलंकरण की शुरूआत मध्य प्रदेश शासन द्वारा की गई। अब प्रतिवर्ष सम्मान अलंकरण दिया जाता है, जिसमें स्मारक, शॉल, श्रीफल एवं 2 लाख रुपए की राशि सम्मान स्वरूप दी जाती है।
10- तानसेन समारोह 2016 ने 92 साल पुरानी परंपरा को तोड़ा। अब तक तानसेन समारोह का समापन संगीत सम्राट की जन्मस्थली बेहट पर होता था, लेकिन इस बार समारोह का आयोजन गूजरी महल में किया गया।
11- तानसेन समारोह का आयोजन यंू तो मियां तानसेन के मकबरे पर होता आया है, लेकिन एक बार इसका आयोजन बैजाताल में किया गया। बैजाताल में कलाकारों और श्रोताओं की बीच की दूरी ज्यादा होने के कारण इसे पुन: मकबरे पर आयोजित किया जाने लगा।
12- मियां तानसेन का जन्म ग्वालियर के पास बेहट में हुआ था और उनका नाम रामतनु मिश्रा था। उन्होंने संगीत की शिक्षा गुरु हरिदास से ली थी। 13- तानसेन की जन्म स्थली बेहट में महादेव का एक टेढ़ा मंदिर है। कहा जाता है कि तानसेन के गायन के प्रभाव से मंदिर टेढ़ा हो गया। तानसेन यहां घंटों रियाज किया करते थे। आज भी संगीत प्रेमी वहां जाकर झिलमिल नदी के किनारे तानसेन का याद कर रियाज करते हैं।
14- तानसेन जन्म से हिंदू थे , लेकिन बाद में हजरत मोहम्मद गौस की संगत में आकर उन्होंने इस्लाम धर्म अपना बना लिया था। वे गौस साहब को अपना आध्यात्मिक गुरु भी मानते थे। तानसेन की मौत 1589 में आगरा में हुई थी लेकिन उनकी इच्छा थी कि उन्हें ग्वालियर में हजरत गौस साहब के मकबरे में दफनाया जाए।
15- तानसेन ने ग्वालियर के संगीत विद्यालय में शिक्षा प्राप्त की। ये विद्यालय ग्वालियर के तोमरवंशी महाराज और ध्रुपद के रचियेता मानसिंह तोमर ने शुरू करवाया था।
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