मिनी स्मार्ट सिटी बनाने के लिए मप्र सरकार द्वारा 282 करोड़ रुपए दिए गए हैं, जिससे यहां अलग-अलग प्रोजेक्टों पर काम होना है। पुल बनाने, सौन्दर्यीकरण करने और विकास की संभावनाएं तलाशने कुछ दिन पूर्व भोपाल से एक टीम आई थी जो यहां का ड्रोन के जरिए शहर की फोटो और विकास के लिए बनाई गई डीपीआर लेकर वह टीम वापस भोपाल लौट गई है। जब इस मामले में पत्रिका ने कुछ क्षेत्रों में जाकर जनता की नब्ज टटोली तो उनका कहना था कि पहले हमको पर्याप्त पानी मिल जाए, शहर को पार्किंग से निजात मिल जाए, कचरा नियमित उठे, और सफाई हो जाए। मूलभूत सुविधाएं मिलें, व्यवस्था सुधरें तभी गुना मिनी स्मार्ट सिटी बन सकता है। लेकिन नगर पालिका अध्यक्ष के चाहने के बाद भी यहां की व्यवस्थाएं सुधरने का नाम नहीं ले रही हैं।
पार्किग: तलघरों का व्यवसायिक उपयोग
शहर में एक के बाद एक नगर पालिका ने तलघर बनाने की अनुमति तो दे दी, लेकिन उसमें पार्किंग की व्यवस्था का इंतजाम कराने की सुध नगर पालिका भूल गया। वर्तमान समय में तेलघानी, जय स्तम्भ चौराहे जैसे कई जगह हैं जहां तलघरों में दुकानें व गोदाम खुल जाने से वहां की पार्किंग तलघरों की जगह सडक़ों पर आ गई, जिससे आधी सडक़ पर हमेशा पार्किँग देखी जा सकती है। उन तलघरों पर जो कार्रवाई होना थी, वह आज तक नहीं हो पाई है।
सफाई
शहर की साफ-सफाई पर हर वर्ष 5० लाख रुपए खर्च होते हैं, कचरा एकत्रित करने के लिए डोर-टू डोर कलेक्शन वाहन लगे हुए हैं। इस सबके बाद भी चाहें राधा कॉलोनी, सिसौदिया कॉलोनी समेत कई कॉलोनियां व मोहल्ले ऐसे हैं जहां कचरे के ढेर लगे हुए देखे जा सकते हैं। नालियां भरी हुई हैं। सीवर लाइन उफन रही है। इन कार्यों में लगे वाहन सडक़ पर दौडऩे के नाम पर हजारों लीटर डीजल खर्च उड़ा रहे हैं। कचरा उठाने की शिकायत करने के बाद भी नगर पालिका कर्मी न तो कचरा उठाने को तैयार है और न ही कचरे में आग लगाने का काम बंद कर रहे हैं। एबी रोड पर मैरिज गार्डन के संचालक सडक़ के दोनों ओर कचरा फेंक रहे हैं।
बस स्टेण्ड
शहर में एक मात्र बस स्टेण्ड जज्जी है, जहां यात्रियों के लिए कोई सुविधा नहीं हैं। आड़ी-तिरछी बसों से हमेशा यहां जाम की स्थिति बनी रहती है। बस स्टैण्ड बनाने के लिए यातायात नगर के पास जगह भी मिल गई थी, लेकिन बस स्टैण्ड नहीं बन पाया।
पेयजल
नगर पालिका पेयजल व्यवस्था पर हर वर्ष सात करोड़ रुपए खर्च करती है। जिसके एवज में तीन करोड़ रुपए नगर पालिका को बिल राशि के रूप में मिलते हैं। 16० की जगह 1०० रुपए जलकर कम करने की घोषणा एक वर्ष बीतने के बाद भी पूरी नहीं हो पाई। कई क्षेत्रों में ट्यूवबेलों को बंद कराने और नलों के जरिए पानी न आने से पानी का संकट खड़ा हो गया है। बूढ़े बालाजी, कैंट जैसे कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां लोगों को पानी के लिए टैंकरों का इंतजार करना पड़ता है। टंकियों के पास ट्यूवबेलों का खनन करवा दिया है जिसके जरिए टंकियां भरवाई जा रही हैं। वहीं एनीकट परियोजना भी करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी शहर को पानी पिलाने में अभी सफल नहीं हो पाई।
सौन्दर्यीकरण: पार्कों की हालत खराब
शहर के सौन्दर्यीकरण की बात की जाए तो यहां पार्कों का जमाव है, जिनमें स्वतंत्रता पार्क ठीक-ठाक स्थिति में है, बाकी या तो अतिक्रमण की चपेट में है या वहां सुविधाओं का अभाव है। जैन मंदिर के सामने, गुप्ता कॉलोनी के पास और जगदीश कॉलोनी में पार्क की भूमि पर अतिक्रमणकारियों का कब्जा है।
शिक्षा:
नगर पालिका शिक्षा उपकर के नाम पर पैसा तो जनता से वसूल रही है। करोड़ों रुपए नगर पालिका के पास है, लेकिन अधिकतर स्कूल भवनों की हालत ये है कि उनके यहां बाउन्ड्री तक नहीं हैं। वहीं कई स्कूलों में लंबे समय से कमरे की मांग की जा रही है, लेकिन अभी तक अतिरिक्त कक्ष बनकर तैयार नहींं हो पाए हैं।
स्ट्रीट लाइट:
नपा ने शहर में स्ट्रीट लाइट लगवाई है, लेकिन कहीं बिजली कंपनी और नगर पालिका के बीच आपसी समन्वय न होने के कारण नानाखेड़ी समेत कई मार्गों की स्ट्रीट लाइटें बंद देखी जा सकती हैं।
बसाहट:
नियमों की धज्जियां उड़ाकर कॉलोनाइजरों ने निजी भूमि के अलावा शासकीय जमीन तक को अपने आधिपत्य में लेकर कॉलोनी बेच दी, जहां मूलभूत सुविधाएं तक नहीं हैं। इससे अवैध कॉलोनियों की भरमार गुना में है, मगर कॉलोनियों का विस्तार शहर में ही हो रहा है। मूलभूत सुविधाएं दिलाने की मांग लंबे समय से उन अवैध कॉलोनियों में रहने वाले लोग कर रहे हैं।