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गोपालगंज में दो जगह बरौली के देवापुर और बैकुंठपुरके पकहा में सारण बांध टूटने से आई बाढ़ ने एक बार फिर तबाही मचा दी है. करीब डेढ़ सौ गांव दोबारा बाढ़ की चपेट में आ गए हैं. यहां सबसे ज्यादा तबाही बैकुंठपुर प्रखंड के फैजुल्लाहपुर, हमीदपुर, जगदीशपुर गम्हारी सहित कई पंचायतों में मची है. हालत यह है कि राजापट्टीकोठी से बलहा होकर हाल में ही बनी बंगरा घाट महासेतु जाने वाली मुख्य सडक पर बाढ़ के पानी का बहाव तेजी से हो रहा है. लोग जान जोखिम में डाल कर आवागमन को मजबूर हैं. बता दें कि यहां के लोग बाढ़ की परेशानी से ढाई माह से ज्यादा वक़्त से जूझ रहे हैं.
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गौरतलब है कि पिछले 24 जुलाई से ही यहां के बाढ़ पीडितों को परेशानी झेलनी पड़ रही है. गंडक पर बने सारण बांध और छरकी का मरम्मत कार्य पूरा होने के बाद कुछ दिनों तक यहां राहत जरूर मिली थी, लेकिन एक सप्ताह पूर्व हुई भारी बारिश ने लाखों लोगों को एक बार फिर बाढ़ की त्रासदी झेलने को मजबूर कर दिया है. बता दें कि नेपाल में भारी बारिश के बाद वाल्मीकि नगर बराज से साढ़े चार लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया था. इसके बाद भी मरम्मत किये गए बांध दो जगहों पर टूट गए. इस बांध के टूटने से अब बरौली और बैकुंठपुर में दर्जनों पंचायतो की सैकड़ो गांव बाढ़ की चपेट में हैं. इस वजह से लाखों लोगों को दोबारा बाढ़ की त्रासदी से जूझना पड़ रहा है.
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बैकुंठपुर के बेलहा गांव के बाढ़ पीड़ित अभिषेक पाण्डेय के मुताबिक वे अपने घरो में वापस लौट गए थे. लेकिन दोबारा बांध टूटने के बाद वे दोबारा पूर्व के हालात में लौट आये हैं. जिधर देखो उधर केवल पानी ही पानी नजर आ रहा है. नतीजा यह है कि जो बाढ़ पीड़ित तम्बू से लौट कर अपने घर आये थे,वे अब जाएं तो कहां-कोई देखने वाला नहीं रह गया. चुनाव आचार संहिता लागू है और प्रखंडों से लेकर प्रदेश मुख्यालय तक के सभी अधिकारी-कर्मचारी चुनाव ड्यूटी में लगा दिए जा चुके हैं. बाढ़ पीड़ित पाना देवी के मुताबिक पहले बाढ़ के पानी ख़त्म होने से कुछ निजात मिली थी, लेकिन दोबारा आयी बाढ़ से घर के सभी राशन ख़राब हो गये हैं. ये लोग खाने के लिए दाने-दाने का मोहताज हैं. इन्हें जिला प्रशासन से अभी तक कोई सहायता और राहत सामग्री नहीं मिली है
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ऐसे में कैसे होगा मतदान
बाढ़ और कोरोना की मार के बीच बिहार में शांतिपूर्ण और निष्पक्ष चुनाव पर गहरे सवाल उठने लगे हैं. जानकारों की मानें तो प्रशासन की ओर से पीड़ितों की कोई मदद नहीं की जा रही. पीड़ित परिवार राम भरोसे अभिशप्त जीवन जीने को विवश हैं. ऐसे में चुनाव की प्रासंगिकता पर पत्रकार संजीव कहते हैं, चुनाव आयोग तो बस अपनी पीठ थपथपाने में लगा है कि संकट में भी सफलतापूर्वक चुनाव करा लिया. सभी राजनीतिक दल और संगठन चुनाव की आपाधापी में हैं. इसे लेकर कोई चिंतित नहीं कि मुश्किलों में फंसे लाखों मतदाताओं की चुनाव में सुरक्षित भागीदारी की गारंटी आखिर कौन लेगा.