मसाला सम्राट महाशय धर्मपाल गलाटी भले ही आज देश का एक पॉपुलर नाम है, लेकिन क्या आपको पता है उन्होंने महज 5वीं कक्षा तक ही पढ़ाई की है। दरअसल 27 मार्च, 1923 को सियालकोट (जो अब पाकिस्तान में है) में जन्में धर्मपाल को पढ़ाई—लिखाई में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थीं। उन्होंने 5वीं कक्षा की पढ़ाई खत्म होने से पहले ही स्कूल छोड़ दिया था। इसके बाद वे अपने पिता के साथ मिलकर काम करने लगे। उन्होंने साबुन, बढ़ई, कपड़ा, हार्डवेयर, चावल का व्यापार किया। बाद में वे अपने पिता की ‘महेशियां दी हट्टी’ के नाम की दुकान में काम करते थे।
महाशय धर्मपाल गुलाटी शुरू से कुछ अलग करना चाहते थे। इसी के चलते वे दिल्ली आ गए थे। मगर यहां आकर पैसा कमाना और गुजारा करना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती थी। चूंकि उनकी जेब में पिता से मिले महज 1500 रुपए ही बचे थे। ऐसे में उन्होंने 650 रुपए में एक घोड़ा और तांगा खरीदा और इसके दिल्ली के रेलवे स्टेशन पर चलाने लगे। इसी के जरिए वे शुरुआती दौर में अपनी आजीविका चलाते थे।
दिल्ली में रहने और खुद का खर्चा उठाने के लिए धर्मपाल भले ही तांगा चलाते थे, लेकिन इस काम के लिए उनका दिल साथ नहीं देता था। लिहाजा उन्होंने तांगा अपने भाई को दे दिया और खुद करोलबाग की अजमल खां रोड पर ही एक छोटा सा खोखा लगा लिया। इसमें वे मसाले बेचा करते थे। उनकी पहचान सियालकोट की देगी मिर्च से पड़ी। लोगों को इसका जायका काफी पसंद आता था। धीरे—धीरे उनका बिजनेस चल पड़ा और 60 का दशक आते-आते महाशियां दी हट्टी नाम से शुरू किया गया उनका कारोबारा दिल्ली में मसालों की एक मशहूर दुकान बन चुकी थी।
दिल्ली के करोलबाग में स्थित दुकान को अब एक बड़े प्लेटफॉर्म में तब्दीलक करने के लिए धर्मपाल का साथ उनके परिवारवालों ने दिया। उन्होंने एक छोटी पूंजी इंवेस्ट करके दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में दुकानें खरीदीं। साथ ही गुलाटी परिवार ने 1959 में दिल्ली के कीर्ति नगर में मसाले तैयार करने की अपनी पहली फैक्ट्री लगाई। यहां से एमडीएच मसाला उद्योग का एक जाना—पहचाना नाम बन गया।