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अगहन मास में इस तिथि को हुआ था भगवान राम और सीता जी का विवाह

Ram Sita Vivah Panchami : अगहन मास में इस तिथि को हुआ था भगवान राम और सीता जी का विवाह

Nov 13, 2019 / 10:51 am

Shyam

अगहन मास में इस तिथि को हुआ था भगवान राम और सीता जी का विवाह

अगहन मास में इस तिथि को हुआ था भगवान राम और सीता जी का विवाह

मार्गशीर्ष (अगहन) मास में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीरामचंद्र जी एवं माता सीता जी का विवाह शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मिथिला राज्य जनकपुर में हुआ था। राजा जनक ने जिस दिन सीता स्वयंवर का आयोजन रखा था उस दिन मार्गशीर्ष (अगहन) मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि थी। अयोध्या पति महाराज दशरथ के जेष्ठ पुत्र राम ने अपने गुरु विश्वामित्र की आज्ञा से ही भगवान शिव के धनुष को तोड़कार राजा जनक की प्रतिज्ञा को पूर्णता प्रदान करते हुए उनकी पुत्री सीता से विवाह किया था। विवाह पंचमी 1 दिसंबर 2019 दिन रविवार को मनाई जाएगी।

 

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ऋषि विश्वामित्र ने महाराज दशरत से राम एवं लक्ष्मण को अपने यज्ञ की रक्षा हेतु कुछ समय के लिए मांगा था और उनका यज्ञ सफलतापूर्वक संपन्न भी हुआ। इसके बाद में महाराज जनक ने सीता स्वयंवर की घोषणा की, जिसमें उन्होंने ऋषि विश्वामित्र को भी निमंत्रण भेजा था। चूंकि उस समय राम-लक्ष्मण विश्वामित्र जी के साथ में ही थे इसलिए वे उन्हें भी अपने साथ लेकर मिथिपलपुरी सीता स्वयंवर देखने गए थे।

 

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महाराज जनक ने उपस्थित ऋषिमुनियों के आशिर्वाद से स्वयंवर के लिये शिवधनुष उठाने के नियम की घोषणा की। राजा जनक की सभा में उपस्थित अनेक राजा, महाराजा एवं राजकुमार शिव धनुष को उठाने में असफल रहे। तभी ऋषि विश्वामित्र की आज्ञा से राम जी ने शिव धनुष को भंग कर सीता जी से विवाह किया, उस दिन अगहन मास की पंचमी तिथि थी। तभी से प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष मास की पंचमी तिथि को विवाह पंचमी पर्व मनाया जाता है।

 

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स्वयंवर सम्पन्न होने के बाद में राम-सीता जी का विधिवत विवाह संस्कार हुआ एवं साथ में देवी उर्मिला- श्रीलक्ष्मण जी, देवी मांडवी- श्री भरत जी एवं देवी श्रुतकीर्ति का विवाह श्री शत्रुघ्न जी से हुआ। उपरोक्त विवाह पंचमी कहीं-कहीं नाग पंचमी के रूप में भी मनाया जाता है। स्कन्द पुराण में वर्णन आता है कि- मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को एक समय व्रत रखकर नागों का पूजन करने वाले मनुष्य की अनेक कामनाएं पूरी हो जाती है।
शुक्ला मार्गशिरे पुण्या श्रावणे या च पंचमी।
स्नानदानैर्बहुफला नागलोक प्रदायिनी।।

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