इस आदेश के कारण यज्ञ, उत्सव, वेद पठन पाठन सब बंद हो गए। धर्म के नाश से देवताओं का बल घटने लगा। यह देख देवराज इंद्र देवगुरु बृहस्पति के पास पहुंचे और उनके चरणों में निवेदन किया कि हे गुरुवर! ऐसी स्थितियों में मुझे प्राण त्यागने होंगे। न ही भाग सकता हूं और न ही युद्ध भूमि में असुरों का सामना कर सकता हूं, कुछ उपाय बताइये।
इस पर गुरु बृहस्पति ने उन्हें रक्षा विधान करने की सलाह दी। श्रावण पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल येनबद्धो बलिःराजा, दानवेंद्रो महाबलः, तेन त्वामिभिवध्नामि रक्षे मा चल मा चलः।। मंत्र के साथ रक्षा विधान संपन्न किया गया और इंद्राणी ने सावन पूर्णिमा के अवसर पर विप्रों से स्वस्तिवाचन कराकर रक्षा सूत्र का तंतु लिया और अभिमंत्रित तंतु इंद्र की दायीं कलाई में बांधा।
साथ ही संग्राम में इंद्र के सुरक्षित रहने और विजयी होने के लिए प्रार्थना की, और फिर से इंद्र को युद्ध भूमि में भेजा। इसके बाद हुए देवासुर संग्राम में रक्षाबंधन विधान के प्रभाव से दानव भाग खड़े हुए और देवताओं की विजय हुई। वे सकुशल लौटे और यहीं से रक्षा बंधन की प्रथा शुरू हुई। ब्राह्मण आज भी राखी (rakhi) के दिन अपने यजमानों के यहां जाकर रक्षासूत्र बांधते हैं। इस तरह सबसे पहले इंद्राणी ने अपनी पति की कलाई पर राखी यानी रक्षा सूत्र बांधा था।
द्वापर युग से बना भाई बहन का त्योहार
भाई बहन के त्योहार रक्षाबंधन के इस रूप को आधिकारिक रूप देने का श्रेय भगवान श्रीकृष्ण को दिया जाता है। इसके बाद ही रक्षाबंधन भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक बन गया था।कथा के अनुसार जब श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तो उनकी अंगुली चोटिल हो गई। उससे रक्त बहने लगा, तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर उनकी अंगुली पर बांध दिया। बाद में द्रौपदी चीरहरण के समय श्रीकृष्ण ने भाई होने का कर्तव्य निभाते हुए द्रौपदी के मान-सम्मान की रक्षा की। इसके बाद ही यह भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक बन गया।