पारसी नव वर्ष (शहनशाही)
देश दुनिया में पारसी धर्म के लोग इस त्यौहार को पारसी पंचांग के पहले महीने के पहले दिन बड़ी धुम धाम से मनाते हैं। भारत में पारसी धर्म के लोग शहंशाही पंचांग के अनुसार मनाते हैं, जिसका मतलब यह है कि नववर्ष का त्यौहार वर्ष के आगे के महीनों में आता है। पारसी नववर्ष केवल पारसी धर्म से संबंधित लोगों से ही जुड़ा रहता है, और यह उत्सव वास्तव में ब्रह्मांड में सभी चीजों के वार्षिक नवीनीकरण को दर्शाता है। लोक कथाओं के अनुसार, नबी ज़रथुश्त्र ने यह पर्व बनाया था और यह त्यौहार आज भी महाराष्ट्र के अधिकतर हिस्सों में एक महत्वपूर्ण त्यौहार के रूप में मनाते हैं।
ऐसे मनाते हैं
पारसी धर्म के श्रद्धालु इस त्यौहार को मनाने के लिए पूर्व में ही तैयारी शुरू कर देते हैं, सभी धर्मावलंबी अपने घरों की, व्यापार स्थल की एवं अपने आसपास की सफाई कर ज्यादा से ज्यादा स्वच्छ बनाते हैं। घर के भीतर और बाहर विशेष सजावट करते हैं। विशेष रूप से, घर के मुख्य दरवाजे को आने वाले अतिथियों के स्वागत के लिए फूलों की माला और चाक पाउडर से आकर्षक और बहुत सुंदर सजाते हैं। इन सजावटों में मुख्य मनमोहक प्राकृतिक दृश्य शामिल होते हैं। मेहमानों का स्वागत करने के लिए उनके ऊपर गुलाबजल छिड़का जाता है। इस दिन समर्थ लोग गरीबों औऱ जरूरत मंदों की सहायता भी करते हैं।
नास्ता करने के बाद जाते हैं मंदिर
सुबह का नास्ता करने के बाद अग्नि मंदिर जाने की परम्परा अपने आप में अनुठी है क्योंकि यह पूरे पर्व को ही एक साथ जोड़ती है। नास्ता करने के बाद लोग परिवार और समाज की उन्नति की प्रार्थना करने के लिए एक साथ मंदिर जाते हैं और नववर्ष की शुभकामनाएं एक दूसरे को देते हैं।
इस पर्व की सबसे बड़ी बात यह है कि लोग इस दौरान अपने अच्छे और बुरे कर्मों पर विचार करते हैं और आगामी वर्ष के लिए सकारात्मक संभावनाओं पर ध्यान देने और चलने का संकल्प लेते हैं। मुलाकात और शुभकामनाओं के बाद, जश्न शुरू होता है और लोग मूंग दाल, पुलाव और बोटी जैसे विभिन्न विशेष आहारों का आनंद उठाते हैं।
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