जन्मः गुरु गोबिंद सिंह का जन्म पौष शुक्ल सप्तमी 1723 विक्रमी (1666 ई.) को पटना में हुआ था। इनके पिता का नाम तेग बहादुर और माता का नाम गुजरी है। गुरु गोबिंद के जन्म के वक्त गुरु तेग बहादुर बंगाल में थे, उनके कहने पर बालक का नाम गोविंद राय रखा गया।
व्यक्तित्वः गुरु गोबिंद सिंह का व्यक्तित्व अलौकिक था। उन्होंने आनंदपुर का सुख, माता पिता की छांव और बच्चों का मोह छोड़कर धर्म रक्षा का मार्ग चुना। उन्होंने दमन, अन्याय, अधर्म के खिलाफ लड़ाई लड़ी। गुरु तेग बहादुर के बलिदान के बाद 11 नवंबर 1675 को नौ साल की उम्र में गुरु गोबिंद सिंह सिखों के दसवें गुरु बने। ये कई भाषाओं के जानकार थे, उन्होंने दशम ग्रंथ समेत कई ग्रंथों की भी रचना की थी।
गुरु गोबिंद सिंह ने लोगों को सीख दी कि युद्ध सैनिकों की संख्या से नहीं जीते जाते, बल्कि हौसले और इच्छाशक्ति से जीतता है। उन्होंने बताया कि जो उसूलों के लिए लड़ता है, वो धर्म योद्धा होता है। वाद्य यंत्र दिलरूबा के आविष्कार का श्रेय उन्हीं को है। उनके दरबार में 52 कवि थे। श्री पांवटा साहिब गुरुद्वारे का सिखों के लिए विशेष महत्व है, क्योंकि यहां गुरु गोबिंद सिंह ने चार साल बिताए थे।
गुरु गोबिंद सिंह की सीखः गुरु गोबिंद सिंह ने धरम दी किरत करनी यानी ईमानदारी पूर्वक आजीविका चलाने और कम करन विच दरीदार नहीं करना यानी काम को लेकर कोताही न बरतने की सीख दी। उन्होंने सामाजिक बुराइयों पर भी प्रहार किया। कहा कि धन, जवानी, कुल, जात दा अभिमान नै करना यानी धन, जवान, जाति आदि पर घमंड नहीं करना चाहिए।
मान्यताः पांवटा साबिह गुरुद्वारे के पास और यमुना नदी किनारे दशम ग्रंथ की रचना के वक्त यमुना नदी से बहुत शोर होता था। इस पर गुरु गोबिंद सिंह ने प्रार्थना की तो यमुना ने शोर करना बंद कर दिया।