राजस्थान पुलिस के महानिदेशक यूआर साहू ने हृदयांश की दुर्लभ अनुवांशिक बीमारी एसएमए टाईप-2 बीमारी और पिता सब इन्स्पेक्टर नरेश चंद्र शर्मा की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए समस्त जिले के पुलिस अधीक्षकों को ईमेल भेज कर हृदयांश की बीमारी (S.M.A.) का इलाज कराने के लिए सब इंस्पेक्टर नरेश चंद शर्मा की मदद करने की अपील की है। डीजीपी ने अपील में लिखा है कि भरतपुर रेंज में कार्यरत नरेश शर्मा सब इंस्पेक्टर के बेटे के बेटे हृदयांश एक स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी नामक बीमारी से ग्रसित है।
एक ऐसी बीमारी जिसका इलाज भारत में नहीं है। विदेश से इस बीमारी की दवा से इलाज करना भी काफी महंगा है। जीन थेरेपी पर आधारित इस दवा की कीमत लगभग 17 करोड़ रुपए है जिसके शानदार परिणाम हैं पर विशेषज्ञों की मानें तो ये दुर्लभ तंत्रिका बीमारी स्पाइनल मस्क्युलर ऐट्रोफी (एसएमए) जिसमें मांसपेशियां का अपक्षय हो तो बहुत अधिक कमजोरी आ जाती है। इसका अंतिम इलाज भी नही है। बीमारी के लक्षणों में सुधार कर उसकी प्रगति को सीमित कर देता है। अभी तक भारत में इस दवा को स्वीकृति नही मिली है। फिर भी करीब 90 से अधिक बच्चों को ये इंजेक्शन लगाया जा चुका है। इसका एक इंजेक्शन इतना महंगा है कि सुपर अमीर व्यक्तियों को छोड दें तो इसके लिए अधिकतर मामलों में क्राउंड फंडिग़ और मानवीय आधार ही इसको उपलब्ध कराने का एक मात्र जरिया रहा है।
आरएसी छटी बटालियन मेडिकल यूनिट के चिकित्सक डॉ. परेमश पाठक ने बताया कि स्पाइनल मस्क्युलर ऐट्रोफी (एसएमए) एक आनुवंशिक बीमारी है जिसके होने के आंकड़े दस हजार में से एक हैं। एक अध्ययन के मुताबिक भारत में एक साल में करीब 3200 बच्चे स्पाइनल मस्क्युलर ऐट्रोफी (एसएमएस) के पैदा होते हैं। भारत में 38 में से एक इन्सान इस स्पाइनल मस्क्युलर ऐट्रोफी बीमारी की जीन का वाहक है। अत: जेनेटिक काउन्सलिंग और जेनेटिक स्क्रीनिंग इस बीमारी से बचाव के उत्तम और सस्ते उपायों में शामिल हैं। स्पाइनल मस्क्युलर ऐट्रोफी एक दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी है जो मोटर न्यूरोंन कॉम्प्लेक्स को को प्रभावित करती है। इस बीमारी में मोटर न्यूरोंन कोशिकाओं में सर्वायवल आफ मोटर न्यूरोंन जीन में उत्परिवर्तन हो जाने के कारण प्रोटीन निर्माण रुक जाता है और मांसपेशियों में दुर्बलता आती जाती हैं जिससे बच्चा चलने में असमर्थ हो जाता है और जैसे जैसे बीमारी बढ़ती है बच्चा खड़ा होने खाने पीने में भी असमर्थ हो जाता है और अंतिम अवस्था तक श्वसन की मांसपेशियां भी शिथिल होने लग जाती हैं और बच्चा स्वत: श्वास लेने में भी असमर्थ हो जाता है।
Jolgensma Medicine : 24 मई 2019 को अमेरिका के एफडीए की ओर से बाजार में ट्रेड नाम से प्रचलित दवा जोलगेंसमा को जीन थेरेपी की दवा के रूप में मान्यता दी गई थी। अत: तात्कालिक परिणामों को छोड़ दें तो लम्बे समय में इस दवा के प्रभावों का क्या असर होगा कहना जल्दबाजी होगा फिर भी जीवन रक्षा में इसके परिणाम शानदार हैं। दो वर्ष से कम के बच्चों को इस दवा को देने से अधिकतर मामलों में मस्कूलर ऐट्राफी रुक जाती है और बच्चा गर्दन सम्भालना और बिना सपोर्ट के खड़े होना और चलने जैसे बदलाव आने लगते हैं। फिसीयोथेरेपी और अन्य रिहेबिलेटशन के साथ यह दवा मरीज की मृत्यु को टाल कर जीवन बड़ा देती है। भारत में इस दवा को अभी मान्यता नही दी गई है और ना उत्पादन होता है। जो भी भारत में स्पाइनल मस्क्युलर ऐट्रोफी के मरीज इस दवा को चिकित्सक की सलाह और सरकार के अनुमति के बाद ही विदेश से मंगाया जाता है। जिसके बाद मरीज को इसका उपचार दिया जाता है।