इसके बाद जब समुद्र से अमृत निकला तब इंद्र का पुत्र जयंत अमृत का कलश अपने हाथों में लेकर आकाश में उड़ गया। इसके बाद सभी दैत्य जयंत का पीछा करने लगे और दैत्यों ने जयंत से अमृत का कलश छीन लिया। इससे फिर युद्ध शुरू हो गया और बारह दिनों तक अमृत का कलश पाने के लिए देवता और असुर घमासान युद्ध करते रहे। इस भीषण युद्ध के दौरान कलश से अमृत की कुछ बूंदें धरती पर प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में गिर गईं। इस समय चंद्रमा, सूर्य, गुरु, शनि ने अमृत कलश की असुरों से रक्षा की थी। इधर जब यह कलह बढ़ने लगा, तब भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप रखकर असुरों का ध्यान भटकाते हुए देवताओं को छल से अमृतपान करा दिया, तब से ही अमावस्या की तिथि पर इन जगहों पर स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है।