विद्यारम्भ संस्कार के लिए सामग्री
१- पूजन के लिए गणेशजी एवं माँ सरस्वती के चित्र या प्रतिमाएँ ।
२- पट्टी, दवात और लेखनी, पूजन के लिए । बच्चे को लिखने में सुविधा हो, इसके लिए स्लेट, खड़िया भी रखी जा सकती है ।
३- गुरु पूजन के लिए प्रतीक रूप में नारियल रखा जा सकता है । बालक के शिक्षक प्रत्यक्ष में हों, तो उनका पूजन भी कराया जा सकता है ।
गणेश एवं सरस्वती पूजन
श्री गणेशजी को विद्या और देवी सरस्वती जी को शिक्षा का प्रतीक माना गया है । विद्या और शिक्षा एक दूसरे के पूरक हैं । एक के बिना दूसरी अधूरी है । शिक्षा उसे कहते हैं कि जो स्कूलों में पढ़ाई जाती है । भाषा, लिपि, गणित, इतिहास, शिल्प, रसायन, चिकित्सा, कला, विज्ञान आदि विभिन्न प्रकार के भौतिक ज्ञान इसी क्षेत्र में आते हैं । शिक्षा से मस्तिष्क की क्षमता विकसित होती है और उससे लौकिक सम्पत्तियों, सुविधाओं, प्रतिष्ठाओं एवं अनुभूतियों का लाभ मिलता है ।
विद्या के प्रतिनिधि गणेश जी हैं । विद्या का अर्थ है विवेक एवं सद्भाव की शक्ति । सद्गुण उचित और अनुचित का, कर्त्तव्य और अकर्त्तव्य का विवेक विद्वानों को ही होता है । विचारों और वर्णों को सुव्यवस्थित बनाने के लिए किया हुआ श्रम- गणेश की आराधना के लिए किया गया तप ही माना जाता हैं । बच्चें के मस्तिष्क पर सदैव विवेक का नियन्त्रण बना रहे, इस तथ्य को हृदय में प्रतिष्ठापित करने के लिए ही विद्यारम्भ के समय गणेशजी का पूजन किया जाता है ।
॥ गणेश पूजन ॥
क्रिया और भावना- घर या किसी गणेश मंदिर में बालक के हाथ में अक्षत, पुष्प, रोली देकर नीचे दिये गणेश मन्त्र का उच्चारण करते हुए गणपति जी की मूर्ति या चित्र के सामने अर्पित करते हुए माता-पिता भावना करें कि इस आवाहन- पूजन के द्वारा विवेक के अधिष्ठाता से बालक की भावना का स्पर्श हो रहा है । गणेश जी के अनुग्रह से भविष्य में बालक मेधावी और विवेकशील बनेगा ।
ॐ गणानां त्वा गणपतिœ हवामहे, प्रियाणां त्वा प्रियपति œ हवामहे, निधीनां त्वा निधिपति œ हवामहे, वसोमम । आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम् । ॐ गणपतये नमः । आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि ॥
॥ सरस्वती पूजन ॥
क्रिया और भावना- बालक के हाथ में अक्षत, पुष्प, रोली आदि देकर मन्त्र बोलकर माँ सरस्वती के चित्र के आगे पूजा भाव से समर्पित कराएँ । भावना करें कि यह बालक कला, ज्ञान, संवेदना की देवी माता सरस्वती के स्नेह का पात्र बन रहा है । उनकी छत्रछाया का रसास्वादन करके यह ज्ञानार्जन में सतत रस लेता हुआ आगे बढ़ सकेगा ।
मंत्र
ॐ पावका नः सरस्वती, वाजेभिर्वाजिनीवती । यज्ञं वष्टुधियावसुः । ॐ सरस्वत्यै नमः । आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि ।।
॥ उपकरणों- माध्यमों की पवित्रता॥
गणेश और सरस्वती पूजन के बाद- दवात, कलम और पट्टी का पूजन वेदमन्त्रों से अभिमन्त्रित किया जाता है, ताकि उनका प्रारम्भिक प्रभाव कल्याणकारी हो सके ।
॥ लेखनी पूजन ॥
शिक्षण और प्रेरणा- विद्यारम्भ करते हुए पहले कलम हाथ में लेनी पड़ती है। कलम की देवी धृति का भाव है ‘अभिरुचि’। विद्या प्राप्त करने वाले के अन्तःकरण में यदि उसके लिए अभिरुचि होगी, तो प्रगति के समस्त साधन बनते चले जायेंगे ।
मंत्र
ॐ पुरुदस्मो विषुरूपऽ इन्दुः, अन्तर्महिमानमानञ्जधीरः । एकपदीं द्विपदीं त्रिपदीं चतुष्पदीम्, अष्टापदीं भुवनानु प्रथन्ताœ स्वाहा ॥
॥ दवात पूजन ॥
शिक्षण और प्रेरणा- कलम का उपयोग दवात के द्वारा होता है। स्याही या खड़िया के सहारे ही कलम कुछ लिख पाती है । इसलिए कलम के बाद दवात के पूजन का नम्बर आता है । दवात की अधिष्ठात्री देवी ‘पुष्टि’ हैं । पुष्टि का भाव है- एकाग्रता । एकाग्रता से अध्ययन की प्रक्रिया गतिशील- अग्रगामिनी होती है । पूजा वेदी पर स्थापित दवात पर बालक के हाथ से मन्त्रोच्चार के साथ पूजन सामग्री अर्पित कराई जाए । भावना की जाए कि पुष्टि शक्ति के सान्निध्य से बालक में बुद्धि की तीव्रता एवं एकाग्रता की उपलब्धि हो रही है।
मंत्र
ॐ देवीस्तिस्रस्तिस्रो देवीर्वयोधसं, पतिमिन्द्रमवर्द्धयन् । जगत्या छन्दसेन्द्रिय œ शूषमिन्द्रे, वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य व्यन्तु यज ॥
॥ पट्टी पूजन॥
बालक द्वारा मन्त्रोच्चार के साथ पूजा स्थल पर स्थापित पट्टी पर पूजन सामग्री अर्पित कराई जाए । भावना की जाए कि इस आराधना से बालक तुष्टि शक्ति से सम्पर्क स्थापित कर रहा है। उस शक्ति से परिश्रम, साधना करने की क्षमता का विकास होगा ।
मंत्र
ॐ सरस्वती योन्यां गर्भमन्तरश्विभ्यां, पत्नी सुकृतं बिभर्ति । अपाœरसेन वरुणो न साम्नेन्द्र œ, श्रियै जनयन्नप्सु राजा ॥
॥ गुरु पूजन ॥
शिक्षण और प्रेरणा- जिस प्रकार गौ अपने बछड़े को दूध पिलाती है, उसी तरह गुरु अपने शिष्य को विद्या रूपी अमृत पिलाते हैं । इस पूजन का प्रयोजन है कि शिक्षार्थी अपने शिक्षकों के प्रति पिता जैसी श्रद्धा रखे, उन्हें समय- समय पर प्रणाम, अभिवादन करे, समुचित शिष्टाचार बरते, अनुशासन माने और जैसा वे निर्देश करें, वैसा आचरण करे । मन्त्र के साथ बालक द्वारा गुरु के अभाव में उनके प्रतीक का पूजन कराया जाए ।
मंत्र
ॐ बृहस्पते अति यदर्योऽ, अर्हाद्द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु, यद्दीदयच्छवसऽ ऋतप्रजात, तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम् । उपयामगृहीतोऽसि बृहस्पतये, त्वैष ते योनिर्बृहस्पतये त्वा ॥
ॐ श्री गुरवे नमः । आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि ।
॥ अक्षर लेखन एवं पूजन ॥
अब पट्टी पर बालक के हाथ से ‘ॐ श्रीगणेशाय नमः एवं ॐ भूर्भुवः स्वः ’ शब्द लिखाया जाए । अक्षर लेखन करा लेने के बाद उन पर अक्षत, पुष्प छुड़वाएँ । ज्ञान का उदय अन्तःकरण में होता है, पर यदि उसकी अभिव्यक्ति करना न आए, तो भी अनिष्ट हो जाता है ।
मंत्र
ॐ नमः शम्भवाय च मयोभवाय च, नमः शंकराय च मयस्कराय च, नमः शिवाय च शिवतराय च ।
॥ विशेष आहुति॥
हवन सामग्री में कुछ मिष्टान्न मिलाकर पांच + पांच आहुतियाँ निम्न मन्त्रों से कराएँ । भावना करें, यज्ञीय ऊर्जा बालक के अन्दर संस्कार द्वारा पड़े प्रभाव को स्थिर और बलिष्ठ बना रही है ।
1- ॐ श्रीगणेशाय नमः ।।
2- ॐ सरस्वती मनसा पेशलं वसु, नासत्याभ्यां वयति दर्शतं वपुः । रसं परिस्रुता न रोहितं, नग्नहुर्धीरस्तसरं न वेम स्वाहा । इदं सरस्वत्यै इदं न मम ।
उपरोक्त पूजा क्रम सम्पन्न होन के बाद बच्चे के उपर आशीर्वचन स्वरूप पुष्प की वर्षा कर आशीर्वाद दें ।
इति समाप्त