वहीं यदि वाहन की बात करें तो जिस तरह भगवान शंकर का वाहन नंदी, विष्णु का गरुड़, कार्तिकेय का मोर, दुर्गा का सिंह और श्रीगणेश का वाहन चूहा है, उसी तरह देवी मां सरस्वती का वाहन हंस है। ऐसे में देवी सरस्वती का वाहन हंस क्यों है? इस संबंध में कई लोगों में मन में कुछ प्रश्न उठते हैं।
तो आज हम आपको देवी मां सरस्वती के वाहन हंस से जुड़ी कुछ खास बातें बता रहें है। देवी सरस्वती के वाहन हंस का उल्लेख देवी की द्वादश नामावली में मिलता है-
ऐसे समझें…
प्रथमं भारती नाम द्वितीयं च सरस्वती। तृतीयं शारदा देवी चतुर्थं हंसवाहिनी॥
यानि : सरस्वती का पहला नाम भारती, दूसरा सरस्वती, तीसरा शारदा और चौथा हंसवाहिनी है। अर्थात हंस उनका वाहन है।
ऐसे में यह बात जानने की भी इच्छा होती है कि आखिर हंस सरस्वती का वाहन क्यों है? तो सबसे पहले यह बात समझनी होगी कि यहां वाहन का अर्थ यह नहीं है कि देवी उस पर विराजमान होकर आवागमन करती हैं।
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार दरअसल यह एक संदेश है, जिसे हम आत्मसात कर अपने जीवन को श्रेष्ठता की ओर ले जा सकते हैं। हंस को विवेक का प्रतीक कहा गया है। संस्कृत साहित्य में नीर-क्षीर विवेक का उल्लेख है। इसका अर्थ होता है- दूध का दूध और पानी का पानी करना। यह क्षमता हंस में विद्यमान होती है।
नीरक्षीरविवेके हंसालस्यं त्वमेव तनुषे चेत्।
– भामिनीविलास 1/13
अर्थात: हंस में ऐसा विवेक होता है कि वह दूध और पानी पहचान लेता है।
श्वेत रंग : पवित्रता और शांति का प्रतीक…
हंस का रंग शुभ्र (श्वेत) होता है। यह रंग पवित्रता और शांति का प्रतीक है। शिक्षा प्राप्ति के लिए पवित्रता आवश्यक है। पवित्रता से श्रद्धा और एकाग्रता आती है। शिक्षा की परिणति ज्ञान है।
ज्ञान से हमें सही और गलत या शुद्ध और अशुद्ध की पहचान होती है। यही विवेक कहलाता है। मानव जीवन के विकास के लिए शिक्षा बहुत जरूरी है, इसलिए सनातन परम्परा में जीवन का पहला चरण शिक्षा प्राप्ति का है, जिसे ब्रह्मचर्य आश्रम कहा गया है। माना जाता है कि जो पवित्रता और श्रद्धा से ज्ञान की प्राप्ति करेगा, उसी पर सरस्वती की कृपा होगी, सरस्वती की पूजा-उपासना का फल ही हमारे अंत:करण में विवेक के रूप में प्रकाशित होता है।
पंडित शर्मा के अनुसार हंस के इस गुण को हम अपनी जिंदगी में अपना लें तो कभी असफल नहीं हो सकते। सच्ची विद्या वही है जिससे आत्मिक शांति प्राप्त हो। सरस्वती का वाहन हंस हमें यही संदेश देता है कि हम पवित्र और श्रद्धावान बन कर ज्ञान प्राप्त करें और अपने जीवन को सफल बनाएं।
एकनिष्ठ प्रेम का प्रतीक…
हंस एकनिष्ठ प्रेम का प्रतीक है। शास्त्रों में वर्णित हंस-हंसनी के प्रेम की कथाओं को आज विज्ञान ने भी सहमति देता है। हंस अपना जोड़ा जीवन में एक ही बार बनाते हैं। यदि उनमें से किसी एक की मौत हो जाती है तो दूसरा उसके प्रेम में अपना जीवन बिता देता है, पर किसी दूसरे को अपना जीवन साथी नहीं बनाता। हमारी परंपरा में भी हंस के इस प्रेम को मनुष्य के लिए आदर्श माना गया है।