scriptपल भर में हो जायेगा शत्रुओं का नाश, लगातार 7 दिन कर लें इस शिव स्तुति का पाठ | shiv rudrashtakam ke labh in hindi | Patrika News
धर्म-कर्म

पल भर में हो जायेगा शत्रुओं का नाश, लगातार 7 दिन कर लें इस शिव स्तुति का पाठ

shiv rudrashtakam ke पाठ से पल भर में कर देंगे शिव शत्रुओं का नाश

Jun 25, 2019 / 01:03 pm

Shyam

shiv rudrashtakam

पल भर में हो जायेगा शत्रुओं का नाश, लगातार 7 दिन कर लें इस शिव स्तुति का पाठ

श्रद्धापूर्वक की गई थोड़ी सी प्रार्थना से शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं भगवान शिवजी। इसी कारण महादेव ‘आशुतोष’ भी कहलाते हैं। श्रीरामचरितमानस में लिखित ‘शिव रुद्राष्टकम’ ( shiv rudrashtakam ) अपने-आप में अद्भुत स्तुति है। अगर कोई शत्रु आपको परेशान कर रहा है तो किसी प्राचीन शिवालय या घर में ही कुशा के आसन पर बैठकर लगातार 7 दिनों तक सुबह शाम ‘रुद्राष्टकम’ स्तुति का पाठ करने से शिवजी भयंकर से भयंकर शत्रुओं का नाश पल भर में करके सदैव अपने शरणागत की रक्षा करते हैं।

 

होना है मालामाल तो ऐसे पढ़ना शुरू कर दें श्री हनुमान चालीसा, जो मांगेंगे वही मिलेगा

 

रामायण के अनुसार, मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम ने रावन जैसे भयंकर शत्रु पर विजय पाने के लिए रामेशवरम में शिवलिंग की स्थापना कर रूद्राष्टकम स्तुति का श्रद्धापूर्वक पाठ किया था, परिणाम स्वरूप शिव की कृपा से रावन का अंत भी हुआ था।


अथ रुद्राष्टकम

1- नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्॥
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम्॥

अर्थात- हे मोक्षरूप, विभु, व्यापक ब्रह्म, वेदस्वरूप ईशानदिशा के ईश्वर और सबके स्वामी शिवजी, मैं आपको नमस्कार करता हूं। निज स्वरूप में स्थित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन, आकाश रूप शिवजी मैं आपको नमस्कार करता हूं।

2- निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं। गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकालकालं कृपालं। गुणागारसंसारपारं नतोऽहम्॥

अर्थात- निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय (तीनों गुणों से अतीत) वाणी, ज्ञान और इन्द्रियों से परे, कैलाशपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार से परे परमेशवर को मैं नमस्कार करता हूं।

 

मिलेगा मनचाहा वरदान, ऐसे करें बाबा भैरव को प्रसन्न

 

3- तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं। मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम्॥
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा। लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा॥

अर्थात- जो हिमाचल के समान गौरवर्ण तथा गंभीर है, जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है, जिनके सिर पर सुंदर नदी गंगाजी विराजमान है, जिनके ललाट पर द्वितीया का चन्द्रमा और गले में सर्प सुशोभित है।

4- चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्॥
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं। प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि॥

अर्थात- जिनके कानों में कुण्डल शोभा पा रहे हैं. सुन्दर भृकुटी और विशाल नेत्र है, जो प्रसन्न मुख, नीलकण्ठ और दयालु है। सिंह चर्म का वस्त्र धारण किए और मुण्डमाल पहने हैं, उन सबके प्यारे और सबके नाथ श्री शंकरजी को मैं भजता हूं।

 

Shani Dev : शनि की ढैय्या से सप्ताह भर में मिलेगा छूटकारा, शनिवार शाम को कर लें उपाय

 

5- प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं। अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं॥
त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं। भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम्॥

अर्थात- प्रचंड, श्रेष्ठ तेजस्वी, परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मा, करोडों सूर्य के समान प्रकाश वाले, तीनों प्रकार के शूलों को निर्मूल करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किए, भाव के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी के पति श्री शंकरजी को मैं भजता हूं।

6- कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी। सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी॥
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी। प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥

अर्थात- कलाओं से परे, कल्याण स्वरूप, प्रलय करने वाले, सज्जनों को सदा आनंद देने वाले, त्रिपुरासुर के शत्रु, सच्चिदानन्दघन, मोह को हरने वाले, मन को मथ डालनेवाले हे प्रभो, प्रसन्न होइए, प्रसन्न होइए।

 

Rath Yatra : जगन्नाथ पुरी के अलावा इस शहर में 500 साल से निकलती है रथ यात्रा, हर साल होता बड़ा चमत्कार

 

7- न यावद् उमानाथपादारविन्दं। भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं। प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥

अर्थात- जब तक मनुष्य श्रीपार्वतीजी के पति के चरणकमलों को नहीं भजते, तब तक उन्हें न तो इहलोक में, न ही परलोक में सुख-शान्ति मिलती है और अनके कष्टों का भी नाश नहीं होता है। अत: हे समस्त जीवों के हृदय में निवास करने वाले प्रभो, प्रसन्न होइए।

8- न जानामि योगं जपं नैव पूजां। नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम्॥
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं। प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो॥

अर्थात- मैं न तो योग जानता हूं, न जप और न पूजा ही। हे शम्भो, मैं तो सदा-सर्वदा आप को ही नमस्कार करता हूं। हे प्रभो! बुढ़ापा तथा जन्म के दु:ख समूहों से जलते हुए मुझ दुखी की दु:खों से रक्षा कीजिए। हे शम्भो, मैं आपको नमस्कार करता हूं।

 

bhagwat geeta : गीता के ये नौ सूत्र बदल देंगे जीवन, कभी नहीं मिलेगी असफलता

 

9- रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ॥।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति॥

अर्थात- जो मनुष्य इस स्तोत्र को भक्तिपूर्वक पढ़ते हैं, उन पर शम्भु विशेष रूप से प्रसन्न होते हैं।

*************

shiv rudrashtakam

Hindi News / Astrology and Spirituality / Dharma Karma / पल भर में हो जायेगा शत्रुओं का नाश, लगातार 7 दिन कर लें इस शिव स्तुति का पाठ

ट्रेंडिंग वीडियो