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षट्तिला एकादशी 2021 : कब है? ये व्रत देता है पापों से मुक्ति

षट्तिला एकादशी का अपना एक अलग महत्व…

Jan 30, 2021 / 08:00 pm

दीपेश तिवारी

Shattila Ekadashi 2021 : Whats special at this time

Shattila Ekadashi 2021 : Whats special at this time

सनातन धर्म में पूरे वर्ष में 24 एकादशी के व्रत पड़ते हैं। यानि हर माह में 2 एकादशी… हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का अत्यधिक महत्व होने के साथ ही एकादशी के व्रत को सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना गया है।

इन्हीं एकादशियों में से एक षट्तिला एकादशी का भी अपना एक अलग महत्व है। इस बार यानि 2021 में षट्तिला एकादशी का व्रत 7 फरवरी 2021 दिन रविवार कि किया जाएगा।

प्रत्येक एकादशी तिथि को भगवान विष्णु की पूजन किया जाता है। एकादशी व्रत को नियम के साथ करने पर मनुष्य के सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। जानते हैं षट्तिला एकादशी का महत्व, शुभ मुहुर्त और पूजा विधि…

षट्तिला एकादशी को भी भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है। इस दिन कुछ लोग बैकुण्ठ रूप में भी भगवान विष्णु की पूजा करते हैं।

षटतिला एकादशी पर तिल का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन 6 प्रकार से तिलों का उपयोग किया जाता है। षटतिला एकादशी के दिन तिल का 6 तरह, स्नान, उबटन, आहुति, तर्पण, दान और सेवन से पापों का नाश होता है। तिलों के इस उपयोग के कारण ही ऐसे षटतिला एकादशी व्रत कहा जाता है।

इस दिन तिलों का प्रयोग परम फलदायी माना गया है। वहीं ये भी मान्यता है कि षटतिला एकादशी का व्रत करने से वाचिक, मानसिक और शारीरिक पापों से मुक्ति प्राप्त होती है।


षटतिला एकादशी का शुभ मुहूर्त व व्रत मुहूर्त 2021:

: एकादशी तिथि प्रारम्भ- फरवरी 07, रविवार को सुबह 06 बजकर 26 मिनट से

: एकादशी तिथि समाप्त- फरवरी 08, सोमवार को सबुह 04 बजकर 47 मिनट तक

: षटतिला एकादशी पारणा मुहूर्त : फरवरी 08, सोमवार को 07:05:20 से 09:17:25 तक

: अवधि: 2 घंटे 12 मिनट

षटतिला एकादशी पूजा विधि Puja Vidhi
इस दिन विधि पूर्वक भगवान विष्णु का पूजन इस प्रकार करें:

1. एकादशी तिथि को प्रातः काल जल्दी स्नानादि करने के बाद भगवान विष्णु की पूजा करें और उन्हें पुष्प, धूप आदि अर्पित करें।
2. इस दिन व्रत रखने के बाद रात को भगवान विष्णु की आराधना करें, साथ ही रात्रि में जागरण और हवन करें।
3. इसके बाद द्वादशी के दिन प्रात:काल उठकर स्नान के बाद भगवान विष्णु को भोग लगाएं और पंडितों को भोजन कराने के बाद दान-दक्षिणा देकर विदा करें और इसके बाद ही स्वयं अन्न ग्रहण करें।

ध्यान रहें इस दिन किसी भी प्रकार से अन्न का सेवन वर्जित माना जाता है। इसके अलावा सभी एकादशी की तरह षटतिला एकादशी व्रत के नियम भी दशमी तिथि से ही आरंभ हो जाते हैं, इसलिए दशमी तिथि को दूसरे प्रहर के भोजन के पश्चात कुछ न खाएं, ताकि आपके पेट में अन्न का अंश न रहे।

षटतिला एकादशी पर तिल का महत्व Mahatva
अपने नाम के अनुरूप यह व्रत तिल से जुड़ा हुआ है। तिल का महत्व तो सर्वव्यापक है और हिन्दू धर्म में तिल बहुत पवित्र माने जाते हैं। विशेषकर पूजा में इनका विशेष महत्व होता है। इस दिन तिल का 6 प्रकार से उपयोग किया जाता है।

1. तिल के जल से स्नान करें
2. पिसे हुए तिल का उबटन करें
3. तिलों का हवन करें
4. तिल मिला हुआ जल पीयें
5. तिलों का दान करें
6. तिलों की मिठाई और व्यंजन बनाएं

मान्यता है कि इस दिन तिलों का दान करने से पापों का नाश होता है और भगवान विष्णु की कृपा से स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है।

षटतिला एकादशी की पौराणिक कथा
धार्मिक मान्यता के अनुसार एक बार नारद मुनि भगवान विष्णु के धाम बैकुण्ठ पहुंचे। वहां उन्होंने भगवान विष्णु से षटतिला एकादशी व्रत के महत्व के बारे में पूछा। नारद जी के आग्रह पर भगवान विष्णु ने बताया कि, प्राचीन काल में पृथ्वी पर एक ब्राह्मण की पत्नी रहती थी। उसके पति की मृत्यु हो चुकी थी।

वह मेरी अन्नय भक्त थी और श्रद्धा भाव से मेरी पूजा करती थी। एक बार उसने एक महीने तक व्रत रखकर मेरी उपासना की। व्रत के प्रभाव से उसका शरीर तो शुद्ध हो गया परंतु वह कभी ब्राह्मण एवं देवताओं के निमित्त अन्न दान नहीं करती थी, इसलिए मैंने सोचा कि यह स्त्री बैकुण्ठ में रहकर भी अतृप्त रहेगी अत: मैं स्वयं एक दिन उसके पास भिक्षा मांगने गया।

जब मैंने उससे भिक्षा की याचना की तब उसने एक मिट्टी का पिण्ड उठाकर मेरे हाथों पर रख दिया। मैं वह पिण्ड लेकर अपने धाम लौट आया। कुछ समय बाद वह देह त्याग कर मेरे लोक में आ गई। यहां उसे एक कुटिया और आम का पेड़ मिला।

खाली कुटिया को देखकर वह घबराकर मेरे पास आई और बोली कि, मैं तो धर्मपरायण हूं फिर मुझे खाली कुटिया क्यों मिली? तब मैंने उसे बताया कि यह अन्नदान नहीं करने तथा मुझे मिट्टी का पिण्ड देने से हुआ है। मैंने फिर उसे बताया कि जब देव कन्याएं आपसे मिलने आएं तब आप अपना द्वार तभी खोलना जब तक वे आपको षटतिला एकादशी के व्रत का विधान न बताएं।

स्त्री ने ऐसा ही किया और जिन विधियों को देवकन्या ने कहा था उस विधि से षटतिला एकादशी का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उसकी कुटिया अन्न धन से भर गई। इसलिए हे नारद इस बात को सत्य मानों कि, जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है और तिल एवं अन्नदान करता है उसे मुक्ति और वैभव की प्राप्ति होती है।

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