दैवी सहायता में उच्चकोटि के देवताओं की अनुकम्पा तो सम्मिलित है ही साथ ही दिवंगत पितरों के अनुदान भी आते है जो कि अपने स्वभाववश किन्हीं की उपयोगी सहायता करना चाहते है । पर उनका संपर्क उच्चस्तरीय व्यक्तियों से ही बनता है । घिनौने और कुकर्मियों का साथ न तो पितर देते है, और न देवता । दुर्गन्धित स्थान से हर कोई बच निकलना चाहता है । उसी प्रकार दिव्य शक्तियाँ भी कुकर्मियों के आह्वान अनुरोध को स्वीकार नहीं करती, जब कि सत्पात्रों को वे स्वयं ही तलाश करती रहती है और अच्छे साथी के साथ सहयोग का आदान प्रदान करते हुए वे अपने सहयोग की सार्थकता अनुभव करते हुए प्रसन्न भी होती हैं । सत्पात्रों को वे सद्प्रेरणाएं एवं मातृपितृवत् स्नेह प्रदान करती हैं ऐसी अदृश्य सहायता के बलबूते अपनी निजी सामर्थ्य की तुलना में उन्हें कहीं अधिक कार्य कर गुजरते देखा जाता है ।
विश्व में ऐसे अनेकों उदाहरण विद्यमान है जिसमें लोगों पर पितर आत्माओं का स्नेह बरसा, उनकी सहायता मिली । इतना ही नहीं वे संबंधित व्यक्ति के पास प्रमाण स्वरूप अपना स्मृति चिन्ह भी छोड़ गये । रोम में विश्व का एक ऐसा ही अद्भुत एवं आश्चर्यजनक संग्रहालय है जिसमें पितर चिन्हित वस्तुओं के अनेकानेक प्रमाण संग्रहित है । इस संग्रहालय को “हाउस ऑफ शैडोज” के नाम से जाना जाता है । इसे “पितरों का गृह” भी कहते है । इसमें तरह तरह के छाया चित्र, तैल चित्र वस्त्र आभूषण, तख्त तथा मूर्तियां आदि रखी हुई है, जिन्हें मरने के बाद वापस आई हुई सूक्ष्म शरीर धारी आत्माओं की निशानी कहा जाता है ।
अवांछनियताओं के निवारण और अनीति के निराकरण की सत्प्रेरणा पैदा करने तथा उस दिशा में आगे बढ़ने वालों की मदद करने का काम भी ये सदाशयी पितरात्माएं करती है । उदात्त आत्माएं पितर के रूप में संताने की सहायता के लिए सदैव प्रस्तुत रहती है । इसकी आत्मीयता की परिधि अति विस्तृत होती है, और पथभ्रष्ट लोगों को कल्याण पथ में नियोजित कर देना ही अपना कर्तव्य मानती है । धर्म पुरोहितों का कहना है कि पित्रों की आत्माओं से भयभीत होने की कोई बात नहीं है, ये पितरों की ही दिवंगत आत्माएं हैं जो अपनी संतानों को कल्याणकारी मार्ग पर चलने क लिए प्रेरणास्पद संकेत देती हैं ।