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परमा एकादशी कब है? जो परम सिद्धियां प्रदान करने के साथ ही दूर करती है धन संकट

परमा एकादशी- 3 साल में केवल एक बार ही आती है

Aug 09, 2023 / 06:31 pm

दीपेश तिवारी

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भगवान विष्णु की एकादशी का व्रत साल भर में सामान्यतरू 24 एकादशी आती हैं। ऐेसे में एक एकादशी ऐसी भी है जो सदैव 3 साल के अंतराल पर आती है। इस एकादशी को परमा एकादशी या अधिकमास एकादशी के नाम से जाना जाता है। दरअसल ये परमा एकादशी हर तीन साल में आने वाले अधिकमास के कृ़ष्ण पक्ष की एकादशी को आती है। ऐसे में इस साल यानि 2023 में इस परमा एकादशी का व्रत शनिवार, 12 अगस्त 2023 को रखा जाएगा।

धर्म शास्त्रों में इस अधिकमास की परमा एकादशी को धन संकट दूर करने वाली एकादशी माना गया है। मान्यता के अनुसार इस व्रत को रखने से जातकों को सभी प्रकार के दुख-दर्द से मुक्ति मिल जाती है।

अधिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 11 अगस्त 2023 को सुबह 05:06 मिनट पर होगी, जबकि एकादशी तिथि का समापन 12 अगस्त 2023 सुबह 06:31 मिनट पर होगा। उदया तिथि के अनुसार एकादशी का व्रत 11 अगस्त को रखा जाना चाहिए लेकिन, तिथि क्षय होने के कारण परमा एकादशी का व्रत 12 अगस्त को रखा जाएगा

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दरअसल परमा एकादशी का व्रत अपने नाम के अनुसार ही परम सिद्धियां प्रदान करने वाला है, ऐसे में इस एकादशी के व्रत को अत्यंत विशेष माना जाता है। वहीं यदि इस दिन आप किसी कारण के चलते व्रत नहीं भी रख पाते तो भी माना जाता है कि जो जातक परमा एकादशी की इस दिन कथा के सुन लेता है उसकी दरिद्रता दूर हो जाती है। तो चलिए जानते हैं परमा एकदाशी व्रत की ये कथा-

परमा एकादशी कथा –
पौराणिक काल में काम्पिल्य नगरी में सुमेधा नाम का एक अत्यंत धर्मात्मा ब्राह्मण रहा करता था। उसकी स्त्री अत्यंत पवित्र और पतिव्रता थी, लेकिन किसी पूर्व पाप के कारण वह दंपती इस जन्म में अत्यंत दरिद्रता का जीवन बिता रहे थे। ऐसे में जहां ब्राह्मण को भिक्षा मांगने पर भी भिक्षा नहीं मिलती थी, तो वहीं उस ब्राह्मण की पत्नी वस्त्रों से रहित होते हुए भी अपने पति की सेवा में रत्त रहती थी यहां तक की अतिथि को अन्न देकर स्वयं भूखी तक रह लेती थी।

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ऐसे में एक दिन ब्राह्मण ने परदेस जाकर कुछ काम करने की बात अपनी स्त्री से कहीं इस पर उसकी पत्नी जो बहुत दयावान थी उसने अपने पति को कहा कि ईश्वर ने भाग्य में जो कुछ लिखा है, उसे टाला नहीं जा सकता। इसके साथ ही उसने अपने पति को इसी स्थान पर रहने को कहा और बोली जो भाग्य में होगा, वह यहीं प्राप्त होगा। स्त्री की इस सलाह को मानकर ब्राह्मण परदेश नहीं गया, और इसी प्रकार समय बीतता रहा। ऐसे में एक बार कौण्डिन्य ऋषि वहां पधारे, इस पर ऋषि को उन्होंने आसन और भोजन दिया। साथ ही दंपत्ति ने ऋषि से दरिद्रता का नाश करने की विधि भरी पूछी, जिस पर ऋषि ने कहा कि अधिक मास के कृष्ण पक्ष की परमा एकादशी के व्रत से सभी प्रकार के पाप, दुरूख और दरिद्रता आदि नष्ट हो जाते हैं। ऐसे में जो कोई मनुष्य इस व्रत को करता है, वह धनवान हो जाता है। उन्होंने ये भी कहा कि इस व्रत में नृत्य, गायन आदि सहित रात्रि जागरण करना चाहिए।

ऋषि ने बताया कि यह एकादशी धन-वैभव प्रदान करती है साथ ही पापों का नाश कर उत्तम गति भी प्रदान करने वाली भी होती है। इस एकादशी व्रत का स्वयं धनाधिपति कुबेर ने भी पालन किया था, जिससे प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें धनाध्यक्ष का पद प्रदान किया था। इसके अलावा इसी व्रत के प्रभाव से सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र को पुत्र, स्त्री और राज्य की प्राप्ति पुनरू हुई थी। वहीं जो मनुष्य पांच दिन तक निर्जल व्रत करते हैं, वे अपने मां-पिता और स्त्री सहित स्वर्ग लोक को जाते हैं।

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ऋषि द्वारा बताई गई विधि के अनुसार ब्राह्मण और उसकी स्त्री द्वारा परमा एकादशी का व्रत करने पर उनकी गरीबी भी दूर हो गई और फिर वे दोनों पृथ्वी पर काफी वर्षों तक सुख भोगने के पश्चात श्रीविष्णु के उत्तम लोक को प्रस्थान कर गए।

परमा एकादशी व्रत की विधि : vrat vidhi of Param Ekadashi
इस एकादशी व्रत की विधि कठिन है। इस व्रत में पांच दिनों तक पंचरात्रि व्रत किया जाता है। जिसमें एकादशी से अमावस्या तक जल का त्याग किया जाता है। केवल भगवत चरणामृत लिया जाता है। इस पंचरात्र का भारी पुण्य और फल होता है। मान्यता है कि परमा एकादशी व्रत को विधि पूर्वक करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। परम एकादशी व्रत एक कठिन होने के ािरण इसे इसे निर्जला व्रत भी कहा गया ह।. व्रत के दौरान भगवत चरणामृत लिया जाता है। एकादशी की तिथि पर व्रत का संकल्प लेकर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। व्रत का पारण करने से पूर्व दान आदि का कार्य करना चाहिए।

1. इस दिन प्रात:काल स्नान के उपरांत भगवान विष्णु के समक्ष बैठकर हाथ में जल व फल लेकर संकल्प करना चाहिए। इसके पश्चात भगवान का पूजन करना चाहिए।
2. इसके बाद 5 दिनों तक श्री विष्णु का स्मरण करते हुए व्रत का पालन करना चाहिए।
3. पांचवें दिन ब्राह्मण को भोजन करवाकर दान-दक्षिणा सहित विदा करने के बाद व्रती को स्वयं भोजन करना चाहिए।

https://youtu.be/6zGN0_qBNm8

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