दरअसल, श्रीकृष्ण के जन्म पर सभी देवी-देवता उनका दर्शन करने के लिए गोकुल पहुंचे और उनका दर्श किए। इस दौरान शनिदेव भी गोकुल पहुंचे थे लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें गोकुल के द्वार पर ही रोक दिया। उन्हें दर्शन की अज्ञा नहीं मिली। आइये जानते हैं कि उन्हें गोकुल में क्यों नहीं आने दिया गया।
कहा जाता है भगवान श्रीकृष्ण ने शनिदेव की वक्र दृष्टि होने के कारण उन्हें गोकुल में प्रवेश करने से मना कर दिया था। इसके बाद शनिदेव दुखी हो गए और मन ही मन सोचने लगे कि कौन सी गलती की है कि हमारे आराध्य मुझसे नाराज हो गए।
इसके बाद शनिदेव नंगगांव के बाहर जंगल में जाकर तपस्या करने लगे। शनिदेव की तपस्या से खुश होकर भगवान श्रीकृष्ण कोयल का रूप रखकर शनिदेव के पास पहुंचे और उन्हें दर्शन दिए। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने शनिदेव से कहा कि आप तो न्यायधीश हैं। आपके द्वारा ही पापियों और अत्याचारियों तो दंड दिया जाता है ताकि धर्म की रक्षा हो।
श्रीकृष्ण ने कहा कि मैं चाहता हूं कि आप मेरे गोकुल धाम की सदैव रक्षा करें और यहां प्राणियों पर अपनी वक्र दृष्टि न डालें और आप यहीं पर निवास करें। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि मैं चाहता हूं कि आप मेरे साथ यहीं पर निवास करें।
भगवान श्रीकृष्ण ने शनिदेव से कहा कि मैं आपसे यहां कोयल के रूप में मिला हूं। इसलिए आज से यह स्थान कोकिलावन के नाम से जाना जाएगा। यहां पर कोयल के मधुर स्वर हमेशा गूंजेंगे।
कोकिलावन के बारे में गरूड़ पुराण और नारद पुराण में भी बताया गया है। माना जाता है कि यहां पर भगवान श्रीकृष्ण और शनिदेव के दर्शन करने मात्र से ही साढ़ेसाती और शनि की ढैय्या हमेशा के लिए समाप्त हो जाती है।