इसके अतिरिक्त मंदिरों या घरों में दैनिक पूजा के दौरान भी देवी देवताओं की आरती पूरी होने के बाद भक्त द्वारा अनिवार्य रूप से कुछ वैदिक मंत्रों का उच्चारण किया जाता है।
ऐसे में आपने भी भगवान शिव की आरती के बाद और किसी भी यज्ञ या पूजा सम्पन्न होने के बाद कर्पूरगौरं मंत्र का उच्चारण सुना ही होगा। जानकारों के अनुसार इस दिव्य व अलौकिक मंत्र को विशेष रूप से बोले जाने का कारण हम में से कई लोग नहीं जानते हैं।
ऐसे में पंडित सुनील शर्मा का कहना है कि किसी भी देवी-देवता की आरती के बाद कर्पूरगौरम् करुणावतारम….मंत्र बोलने के पीछे बहुत गहरे अर्थ छिपे हुए हैं। दरअसल मान्यता के अनुसार शिव-पार्वती विवाह के समय भगवान शिव की ये स्तुति विष्णु द्वारा गाई गई है।
पंडित शर्मा के अनुसार शिव शमशान वासी हैं, ऐसे में माना जाता है कि उनका स्वरुप बहुत भयंकर और अघोरी वाला है। जबकि, ये स्तुति बताती है कि उनका स्वरुप बहुत दिव्य है।
शिव को सृष्टि का अधिपति माना गया है, वे मृत्युलोक के देवता होने के साथ ही संसार के जितने भी जीव हैं (मनुष्य सहित) उन सब के अधिपति भी हैं। ये स्तुति को गाने का मुख्य कारण ये है कि इस समस्त संसार का अधिपति यानि भगवान शिव हमारे मन में वास करें।
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वहीं भगवान शिव श्मशान वासी होने के कारण मृत्यु के भय पर विजय दिलाते हैं ऐसे में वे हमारे मन में वास कर मृत्यु का भय दूर करें।
कर्पूरगौरं मंत्र
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् ।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि ।।
इस बेहद अलौकिक मंत्र का अर्थ,ऐसे समझें
कर्पूरगौरं- कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले ।
करुणावतारं- जो करुणा के साक्षात् अवतार हैं ।
संसारसारं- समस्त सृष्टि के जो सार हैं ।
भुजगेंद्रहारम्- इस शब्द का अर्थ है जो हार के रूप में सांप को धारण करते हैं ।
सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि- इसका अर्थ है कि जो शिव, पार्वती के साथ हमेशा मेरे हृदय में निवास करते हैं, उनको मेरा नमस्कार है ।
अर्थात- जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव मां भवानी के साथ मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमस्कार है ।