scriptKanwar Yatra Sawan 2024: कांवड़ यात्रा से मिलती है शिवजी की कृपा, जानें कौन था पहला कांवड़िया और साल में दो बार होने वाली कांवड़ यात्रा का इतिहास | Kanwar Yatra Sawan 2024 ravan story Kanwad Yatra brings blessings of Lord Shiva know who was first Kanwaria history of Kanwar Yatra kanvar yatra ka niyam pauranik mahatv parashuram katha | Patrika News
धर्म-कर्म

Kanwar Yatra Sawan 2024: कांवड़ यात्रा से मिलती है शिवजी की कृपा, जानें कौन था पहला कांवड़िया और साल में दो बार होने वाली कांवड़ यात्रा का इतिहास

Kanwar Yatra Sawan 2024: सावन कांवड़ यात्रा 2024 शुरू होने वाली है। इसमें शिव भक्त पवित्र नदियों का जल लेकर भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं। यह कांवड़ यात्रा साल में दो बार आयोजित होती है। आइये जानते हैं कांवड़ यात्रा का पौराणिक महत्व, कौन था पहला कांवड़िया और कांवड़ यात्रा का नियम …

भोपालJul 18, 2024 / 10:40 pm

Pravin Pandey

Kanwar Yatra Sawan 2024

Kanwar Yatra Sawan 2024: कांवड़ यात्रा से मिलती है शिवजी की कृपा, जानें कौन था पहला कांवड़िया और साल में दो बार होने वाली कांवड़ यात्रा का इतिहास

Kanwar Yatra Sawan 2024: भारत में कांवड़ यात्रा साल में दो बार निकाली जाती है, एक फाल्गुन महीने महीने में जो महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव के जलाभिषेक से पूरी होती है और दूसरी कांवड़ यात्रा सावन में निकाली जाती है और श्रावण शिवरात्रि को पूरी होती है। इस साल सावन का महीना 22 जुलाई से शुरू हो रहा है और यह महीना 19 अगस्त सावन पूर्णिमा पर पूरा होगा। जबकि सावन कावड़ यात्रा 22 जुलाई से 2 अगस्त 2024 तक चलेगी। लेकिन क्या आपको पता है कांवड़ यात्रा का इतिहास और पौराणिक महत्व क्या है, आइये जानते हैं …

कांवड़ यात्रा का महत्व

सावन का महीना भगवान शिव को बहुत प्रिय है, इस महीने भगवान शिव की पूजा अर्चना से भगवान भोलेनाथ आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं। इसका एक आसान उपाय कावड़ यात्रा भी है। इसके अनुसार शिवभक्त भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कावड़ यात्रा निकालते हैं और पवित्र नदी का जल लेकर कठिन व्रत का पालन करते हुए घर के पास या किसी पौराणिक शिवालय में हर सोमवार जल अर्पित करते हैं। यह कांवड़ यात्रा सावन में सोमवार को शिवजी के जलाभिषेक से शुरू होकर सावन शिवरात्रि तक चलती है। सबसे ज्यादा शिवभक्त शिवरात्रि पर ही जलाभिषेक करते हैं। मान्यता है कि इससे भक्त की मनोकामना पूरी होती है।

कांवड़ यात्रा शुरू करने से पहले श्रद्धालु बांस की लकड़ी पर दोनों ओर टिकी हुई टोकरियों और कलश से कांवड़ तैयार करते हैं या खरीदते हैं। बाद में इसी कांवड़ को सुदूर ले जाकर कलश में पवित्र नदी से गंगाजल भरकर लौटते हैं। कांवड़ यात्रा में शामिल शिवभक्तों को कांवडि़या कहा जाता है। नंगे पांव यात्रा करते कांवडिये इस कावड़ को यात्रा में अपने कंधे पर ही रखते हैं, इसे किसी भी हाल में जमीन पर नहीं रखते। कहीं रूकना होता है तो पेड़ पर या किसी कांवड़िये कांधे पर रख दिया जाता है।

कांवड़ यात्रा का इतिहास

किंवदंतियों के अनुसार भगवान विष्णु के अवतार भगवान परशुराम, भगवान शिव के परम भक्त थे। मान्यता है कि श्रावण मास में वे कावड़ लेकर बागपत जिले के पास ‘पुरा महादेव’ गए थे। इसके लिए उन्होंने गढ़मुक्तेश्वर से गंगा का जल लेकर भोलेनाथ का जलाभिषेक किया था। तब से इस परंपरा की शुरुआत हो गई और भगवान शिव को प्रिय महीने सावन और भगवान शिव के विवाह और सृष्टि की शुरुआत के पावन महीने फाल्गुन में भक्त कावड़ यात्रा निकालने लगे।

इस कारण किया गया अभिषेक, रावण था पहला कांवड़िया

एक अन्य मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जो विष निकला था उसे भगवान शिव ने सृष्टि की रक्षा के लिए पी लिया था। इसके बाद उनका कंठ नीला पड़ गया और उनके शरीर में जलन होने लगी थी। इसके बाद देवताओं ने शिव जी को जल अर्पित किया था। इसी के बाद कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई। एक अन्य मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन का विष पीने से शिवजी को हो रहे कष्ट को कम करने के लिए शिव भक्त रावण ने तप किया था। इसके लिए रावण कांवड़ में जल भरकर लाया था और शिव जी की जलाभिषेक किया था।
ये भी पढ़ेंः Sawan 2024: 72 साल बाद सावन में बन रहा ये दुर्लभ योग, 3 राशियों को मिलेगा महादेव का विशेष आशीर्वाद

कावड़ यात्रा के नियम

  1. कांवड़ियों को संयम के साथ एक साधु और ब्रह्मचारी का जीवन जीना होता है। भगवान का ध्यान किया जाता है।
  2. गंगाजल भरने से लेकर उसे शिवलिंग पर अभिषेक तक का पूरा सफर भक्त पैदल, नंगे पांव पूरा करना होता है।
  3. यात्रा के दौरान नशा नहीं करना चाहिए और मांसाहार का सेवन नहीं किया जाता है।
  4. कांवड़ यात्रा में किसी को अपशब्द बोलने पर पुण्यफल नष्ट हो जाता है।
  5. स्नान किए बगैर कावड़ को नहीं छूना चाहिए और यात्रा के दौरान शुद्धता का ध्यान रखना चाहिए।
  6. आम तौर पर यात्रा के दौरान कंघा, तेल, साबुन आदि का इस्‍तेमाल नहीं किया जाता है।
  7. कांवड़ यात्रा के दौरान सावन शिवरात्रि और फाल्गुन में महाशिवरात्रि पर शिवजी के जलाभिषेक से पहले तक चारपाई पर नहीं बैठा जाता है और कठोर नियम संयम का पालन किया जाता है।

इन स्थानों पर कावड़ यात्रा का है महत्व

सावन की चतुर्दशी के दिन किसी भी शिवालय पर जल चढ़ाना पुण्यफलदायक माना जाता है। अधिकतर कावड़िये मेरठ के औघड़नाथ, पुरा महादेव, वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर, झारखंड के वैद्यनाथ मंदिर और बंगाल के तारकनाथ मंदिर में पहुंचना पसंद करते हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार आदि स्थानों के लोग बैद्यनाथ धाम से 108 किलोमीटर पहले सुल्तान गंज से जल लेकर पैदल शिवजी के द्वार पहुंचते हैं तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोग हरिद्वार से जल लाकर पुरा महादेव या आसपास के शिवालयों में जल चढ़ाते हैं।

Hindi News / Astrology and Spirituality / Dharma Karma / Kanwar Yatra Sawan 2024: कांवड़ यात्रा से मिलती है शिवजी की कृपा, जानें कौन था पहला कांवड़िया और साल में दो बार होने वाली कांवड़ यात्रा का इतिहास

ट्रेंडिंग वीडियो