भक्तो को सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करने वाले भगवान शिवजी का विशेष स्वरूप अत्यंत ही सौम्य और शांत है। इसके विपरीत काल भैरव बाबा का स्वरूप रौद्र रूप भयानक और विकराल माना जाता है। काल भैरव बाबा की शरण में जाने वाले भक्तों के जीवन के सारे दुख दूर हो जाते हैं, एवं सभी मनोकामना भी पूरी है जाती है।
बाबा काल भैरव के जन्म का रहस्य
बाबा काल भैर के जन्म के बारे में शिव पुराण में एक कथा आती है कि एक बार मेरु पर्वत के शिखर पर ब्रह्मा जी ध्यानरत थे, तभी सारे देवी-देवता और ऋषिगण ब्रह्मांड के उत्तम तत्व के बारे में जानने के लिए उनेक पास गए। ब्रह्मा जी ने बताया की वे स्वयं ही उत्तम तत्व सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वोच्य है। ब्रह्मा जी की बात से भगवान विष्णु जी सहमत नहीं थे और उन्होंने कहा कि वह इस समस्त सृष्टि के सर्जक और परमपुरष परमात्मा है। दोनों की बात सुनकर एक दिव्य प्रकाश पुंज ज्योति उनके बीच में प्रकट हो गई।
उक्त ज्योति प्रकाश के मंडल में विष्णु जी एवं ब्रह्मा जी ने एक पुरुष का आकार देखा, जो 3 नेत्र वाले देवों के देव महादेव शिव रूप दिखाई देने लगे। जिसके हाथ में त्रिशूल, गले में सर्प और माथे पर अर्ध चंद्र दिखाई दे रहे रहा था। उक्त ज्योति से ब्रह्मा जी बोलें तुम रूद्र हो जिसका अस्तिव मेरे कारण है। उनके इस अहंकार को देखकर भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए और उस क्रोध से ही बाबा भैरव की उत्पत्ति हुई। उनका रूप अति विशाल भयंकर दिखाई देने लगा जो बाद में बाबा काल भैरव के रूप में पूजे और माने जाने लगे। काल भी जिससे भयभीत होता था। दुष्ट आत्माओ का नाश करने वाला ये अमरदक भी कहलाए जिन्हें बाद में काशी नगरी का अधिपति भी बनाया गया। उनके भयंकर रूप को देखकर ब्रह्मा और विष्णु शिव की आराधना करने लगे और गर्भरहित हो गए।
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