पूजा पाठ के अलावा, मांगलिक कर्मों में जरूरी है कुमकुम
कुमकुम को पूजा की सबसे जरूरी सामग्रियों में से एक माना जाता है। पूजा के अलावा भी अन्य सभी शुभ मांगलिक कर्मों में भी कुमकुम का उपयोग होता है। घर हो या मंदिर हर जगह पूजा की थाली में कुमकुम रखा जाता है। कुमकुम का लाल रंग प्रेम, उत्साह, उमंग, साहस और शौर्य का प्रतीक है। इससे प्रसन्नता का संचार होता है। ग्रंथों में भी इसे दिव्यता का प्रतीक माना गया है।
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दायित्व के निर्वहन की शुरुआत कुमकुम से
पूजा-पाठ के साथ ही दैनिक जीवन में भी कुमकुम का उपयोग होता है। पुरुष तिलक और महिलाएं कुमकुम की बिंदी लगाती है। पुराने समय में राजा जब युद्ध के लिए जाते थे, तब उनकी विजय के लिए प्रतीक के रूप में कुमकुम का तिलक लगाया जाता था। राजतिलक के समय भी तिलक लगाया जाता था। इस परंपरा का आशय ये है कि दायित्व के निर्वहन की शुरुआत कुमकुम से की जाए, क्योंकि कुमकुम ही विजय है, दायित्व है और मंगल भी। कुमकुम का तिलक सम्मान का प्रतीक है। ये तिलक हमें जिम्मेदारी का अहसास करता है।
स्त्रियों की संपूर्ण कामनाओं को पूरा करने वाला कुमकुम
शास्त्रों में बताएं गये पूजा पाठ के विधान के बारे में लिखा है कि- “कुमकुम कान्तिदम दिव्यम् कामिनीकामसंभवम्”
अर्थात- कुमकुम अनंत कांति प्रदान करने वाला पवित्र पदार्थ है, जो स्त्रियों की संपूर्ण कामनाओं को पूरा करने वाला है।
यहां केवल चिट्ठी में लिखी अर्जी ही स्वीकार करते हैं श्री गणेश
कुमकुम का वैज्ञानिक महत्व
आयुर्वेद में कुमकुम को औषधि माना गया है। इसे हल्दी और चूने या नींबू के रस में हल्दी को मिलाकर बनाया जाता है। हल्दी खून को साफ करती है और शरीर की त्वचा का सौंदर्य बढ़ाती है। कुमकुम से त्वचा का आकर्षण बढ़ता है। माथे के आज्ञा चक्र पर कुमकुम की बिंदी लगाई जाती है, इससे मन की एकाग्रता बढ़ती है, मन व्यर्थ की बातों में नहीं भटकता है।
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