नारद पुराण के अनुसार, एक समय दैत्यराज जलंधर का अत्याचार तीनों लोक में बढ़ गया था। जलंधर के अत्याचार से ऋषि-मुनि, देवता गण और मनुष्य बेहद परेशान रहते थे। जलंधर वीर और पराक्रमी था, इसका सबसे बड़ा कारण उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म था। यही कारण था कि उसे कोई हरा नहीं पाता था।
विष्णु ने भंग किया वृंदा का पतिव्रता धर्म! नारद पुराण के अनुसार, जलंधर के अत्याचर से परेशान देवता गण विष्णु के शरण में पहुंचे और रक्षा की गुहार लगाई। तब भगवान विष्णु ने जलंधर की पत्नी वृंदा की पतिव्रता धर्म भंग करने का उपाय सोचा। इसके बाद विष्णु जलंधर का रूप धारण कर वृंदा को स्पर्श कर लिया और इस प्रकार वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग हो गया और जलंधर देवताओं के साथ युद्ध में मारा गया।
वृंदा ने विष्णु को दिया श्राप! विष्णु द्वारा छल करने की बात वृंदा को पता चला तो उसने श्रीहरि को श्राप दिया कि जिस तरह आपने छल से मुझे पति वियोग दिया है, उसी तरह आपकी पत्नी का छलपूर्वक हरण होगा और आपको भी पत्नी वियोग का सहन करना पड़ेगा। यह श्राप देने के बाद वह अपने पति के साथ सती हो गई। कुछ कथाओं में बताया जाता है कि वृंदा ने भगवान विष्णु को पत्थर ( शालिग्राम ) होने का श्राप दे दिया था।
वृंदा जहां सती हुई वहां उग आया तुलसी का पौध पौराणिक मान्यता के अनुसार, जिस स्थान पर वृंदा अपने पति के साथ सती हुई थीं, उस स्थान पर तुलसी का पौधा उग आया। कहा जाता है कि वृंदा के पतिव्रता धर्म तोड़ने पर भगवान विष्णु को बहुत दुख हुआ और वृंदा के पतिव्रता धर्म का सम्मान करते हुए वरदान दिया कि वृंदा का तुलसी स्वरूप हमेशा मेरे साथ रहेगी।
भगवान विष्णु ने वृंदा को दिया वरदान इसके बाद भगवान विष्णु ने वृंदा को वरदान दिया कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को जी भी वृंदा का विवाह मेरे शालिग्राम स्वरूप से कराएगा, उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होगी। यही कारण है कि देवउठनी एकादशी के दिन शालिग्रमा और तुलसी का विवाह कराने का विधान है। इसके अलावा भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी का बड़ा महत्व माना गया है। माना जाता है कि तुलसी के बिना भगवान विष्णु की पूजा अधूरी होती है।