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मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र है। मंदिर खारुन नदी का उद्गम स्थल है, जो चारों ओर जंगल से घिरा है। पहले यह मंदिर खुले आसमान के नीचे था। फिर मंदिर बनाया गया।
मां कंकालिन मैया की उत्पत्ति को लेकर मंदिर पुजारी रामकुमार कोमर्रा ने बताया कि 700 से 800 साल पहले ग्राम पेटेचुआ निवासी बुजुर्ग चिराम मंडावी गांव से दूर
जंगल में महुआ बीनने जाते थे। महुआ बीनने के बाद चट्टानी जमीन होने के कारण उसी स्थान पर सुखाकर घर चले आते थे। अगले दिन पहुंचने पर सुखाया हुआ, महुआ गायब हो जाता था। यह सिलसिला लगातार चलता रहा। एक दिन चिराम मंडावी मामले का पता लगाने रात में उसी स्थान पर रुक गया, जहां उसने महुआ सुखाया था। रात हुई तब महुआ अपने आप गायब हो गया।
चिराम मंडावी ने आवाज देकर कहा कि कौन है, जिसने महुआ को गायब किया है, सामने आओ। तब हवा स्वरूप माताजी ने कहा कि मैं कंकालिन हूं, लेकिन उसे यकीन नहीं हुआ और सामने आने की बात कही। तब जोरदार आवाज आई। मां कंकालिन धरती चीरकर स्वयं प्रकट हुई और बताया कि मैं तुम्हारा महुआ गायब करती हूं। यह कहते हुए मां कंकालिन उसके शरीर में प्रवेश कर गई, जिससे वह मूर्छित हो गया।
यह सिलसिला चलते-चलते सुबह हो गई। तब उसकी पत्नी उसे खोजने जंगल गई। चिराम मूर्छित अवस्था में मिला। तब उसने घटना की जानकारी ग्रामीणों को दी। ग्रामीण उसे लेकर गांव आ गए। जहां उसे होश आया और उसने पूरी घटना ग्रामीणों को बताई। तब ग्रामीणों ने पत्थर तोड़कर प्रकट हुई मां की पूजा-अर्चना प्रारंभ की। तब से मां कंकालिन की पूजा-अर्चना की जा रही है।
देव दशहरा में उमड़ी ग्रामीणों की भीड़
देव दशहरा उत्सव मनाया गया, जो देश का पहला दशहरा है। इसमें हजारों श्रद्धालु अपनी मन्नतें लेकर पहुंचे और मां से मुरादें मांगी। मंदिर प्रांगण में सुबह से ही भक्तों की भीड़ लगी रही। देव दशहरा में आसपास के ग्रामीण बाजा-गाजा, डांग-डोरी लेकर पहुंचते हैं। कहते हैं, जो भी सच्चे दिल से मां से मनोकामना करता है, उसे वह पूरा करती हैं।
देश की पहली होली भी यहीं मनाई जाती है
कंकालिन मंदिर में देश का प्रथम देव दशहरा मनाने के साथ ही सबसे पहले होलिका दहन भी होता है, जो फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार को माताजी का फाग होता है।
मन्नत पूरी होने के बाद फिर मंदिर आते हैं लोग
यहां कोई भी भक्त मन्नत मांगने के लिए पहुंचते है। अगर वह पुरी हो जाती है तो साल भर बाद नवरात्रि में पुन: पहुंचते है। मां कंकालीन मैय्या के दर्शन के लिए 52 गांव के अलावा धमतरी, बालोद व कांकेर जिले के श्रद्धालु भी पहुंचते है।