पिता की खुशी के लिए किया ब्रह्मचर्य
धार्मिक मान्यता है कि भीष्म के पिता राजा शांतनु गंगा से विवाह के बाद मछुआरों की कन्या सत्यवती से विवाह करना चाहते थे। वहीं सत्यवती के पिता ने राजा शांतनु के सामने यह शर्त रखी कि सत्यवती का पुत्र ही हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठेगा। यह सुनकर बात सुनकर भीष्म ने अपने पिता की खुशी के लिए अपना राज्याभिषेक छोड़ने की प्रतिज्ञा ली। लेकिन सत्यवती के पिता को यह डर था कि देवव्रत के बच्चे भविष्य में उनके वंश के लिए खतरा बन सकते हैं। इस भय को दूर करने के लिए भीष्म ने आजीवन ब्रह्मचारी रहने की भीषण प्रतिज्ञा ली।
भीषण प्रतिज्ञा से मिला भीष्म नाम
इस प्रतिज्ञा से न केवल उन्हें भीष्म का दर्जा मिला बल्कि उन्हें अपने परिवार और राज्य के प्रति सर्वोच्च निष्ठा का प्रतीक भी बना दिया। भीष्म के ब्रह्मचर्य ने उन्हें आत्मसंयम, समर्पण, और त्याग का प्रतीक बनाया। देवव्रत का ब्रह्मचर्य उनकी महानता का आधार बना। उन्होंने इसे न केवल अपने पिता के लिए बल्कि धर्म और कर्तव्य के लिए भी निभाया। उनकी यह प्रतिज्ञा आज भी निष्ठा और त्याग का अद्भुद उदाहरण है।
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