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Bhishma Pitamah: देवव्रत ने आजीवन ब्रह्मचर्य रहने का क्यों लिया था प्रण, जानिए रोचक कहनी

Bhishma Pitamah: गंगा पुत्र भीष्म ने अपने पिता राजा शांतनु की खुशी के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया था। इसलिए आज वह समाज के लिए त्याग, संकल्प और समर्पण के प्रतीक माने जाते हैं।

जयपुरDec 04, 2024 / 03:38 pm

Sachin Kumar

Bhishma Pitamah

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Bhishma Pitamah: भीष्म पितामह महाभारत के ऐसे महायोद्धा थे। जिन्हें आज भी त्याग तपस्या और संकल्प के लिए भी जाना जाता है। उनकी भीषण प्रतिज्ञा की वजह से ही उनका नाम भीष्म पड़ा था। जबकि भीष्म का पहला नाम देवव्रत था। लोग उनके बाबा ब्रह्मचारी भीष्म के नाम से भी जानते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि भी भीष्म आजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा क्यों की? आइए जानते हैं।

पिता की खुशी के लिए किया ब्रह्मचर्य

धार्मिक मान्यता है कि भीष्म के पिता राजा शांतनु गंगा से विवाह के बाद मछुआरों की कन्या सत्यवती से विवाह करना चाहते थे। वहीं सत्यवती के पिता ने राजा शांतनु के सामने यह शर्त रखी कि सत्यवती का पुत्र ही हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठेगा। यह सुनकर बात सुनकर भीष्म ने अपने पिता की खुशी के लिए अपना राज्याभिषेक छोड़ने की प्रतिज्ञा ली। लेकिन सत्यवती के पिता को यह डर था कि देवव्रत के बच्चे भविष्य में उनके वंश के लिए खतरा बन सकते हैं। इस भय को दूर करने के लिए भीष्म ने आजीवन ब्रह्मचारी रहने की भीषण प्रतिज्ञा ली।

भीषण प्रतिज्ञा से मिला भीष्म नाम

इस प्रतिज्ञा से न केवल उन्हें भीष्म का दर्जा मिला बल्कि उन्हें अपने परिवार और राज्य के प्रति सर्वोच्च निष्ठा का प्रतीक भी बना दिया। भीष्म के ब्रह्मचर्य ने उन्हें आत्मसंयम, समर्पण, और त्याग का प्रतीक बनाया।
देवव्रत का ब्रह्मचर्य उनकी महानता का आधार बना। उन्होंने इसे न केवल अपने पिता के लिए बल्कि धर्म और कर्तव्य के लिए भी निभाया। उनकी यह प्रतिज्ञा आज भी निष्ठा और त्याग का अद्भुद उदाहरण है।
डिस्क्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारियां पूर्णतया सत्य हैं या सटीक हैं, इसका www.patrika.com दावा नहीं करता है। इन्हें अपनाने या इसको लेकर किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले इस क्षेत्र के किसी विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।

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