पिता की जीत के लिए इरावण की कुर्बानी
महाभारत के अनुसार इरावण अर्जुन और नागकन्या उलूपी का पुत्र था। मान्यता है कि यह वीर और त्यागी योद्धा था। जब कौरव और पांडवों के बीच महाभारत का युद्ध चल रहा था तो उस दौरान निर्णायक जीत के लिए कुछ धार्मिक अनुष्ठानों और बलिदानों आश्यकता पड़ी थी। मान्यता है कि इस बीच पांडवों की जीत सुनिश्चित करने के लिए नरबलि की मांग की गई थी। इस बलि में एक योद्धा को स्वयं अपनी इच्छा से अपना जीवन दान करना होता था। कहा जाता है कि जब नरबलि की मांग सामने आई तो पांडवों के शिविर में सन्नाटा पसर गया। कोई भी इस बलिदान को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था। लेकिन ऐसे समय में इरावण ने स्वयं को प्रस्तुत किया। उसने अपने पिता अर्जुन और पांडवों की जीत के लिए स्वेच्छा से अपनी बलि दे दी। इरावण का यह निर्णय अद्वितीय साहस और समर्पण का प्रतीक है।
श्रीकृष्ण ने इसलिए धारण किया था मोहिनी रूप
इरावण ने अपनी बलि देने से पहले अंतिम इच्छा व्यक्त की थी। वह मृत्यु से पहले विवाह करना चाहता था। जिससे वह वैवाहिक जीवन के सुख का अनुभव कर सके। मान्यता है कि इरावण की इस इच्छा को पूरा करने के लिए भगवान कृष्ण ने मोहिनी का रूप धारण कर उससे विवाह किया था। इसके बाद इरावण ने अपनी नरबलि दी।