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यह क्षेत्र एशिया का सबसे पुराना डायनासोर जीवाश्म स्थल है। यह 2011 में डायनासोर जीवाश्म राष्ट्रीय उद्यान के रूप में अधिसूचित किया गया था। ट्यूरोनियन काल में ये भूभाग समुद्र का हिस्सा हुआ करता था। यहां मान नदी घाटी में विलुप्त 6 तरह की शॉर्क के दांतों के अवशेष मिल चुके हैं। इससे भी पूर्व के युग के मगरमच्छ नुमा जीव के कंकाल के हिस्से भी मिले हैं। साथ ही मांसाहारी डायनासोर के 6.50 करोड साल पुराने अंडे भी पाए गए। ये स्थान उनके लिए अंडे देने के सबसे सुरक्षित स्थानों में से एक था। यहां 256 अंडे के जीवाश्म मिल चुके हैं। जीवाश्म बनते हुए अंडे कई लेयर में जुड़ते गए।
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धार के बाग क्षेत्र में डायनासोर के अंडों का बाहुल्य है। खास बात यह है कि इन गोलाकार पत्थरों को गांव के लोग देवता मानते हैं। इन अंडों की बाकायदा विधिविधान से पूजा भी करते हैं। कुछ जगहों पर तो इन्हें कुल देवता का दर्जा तक दे दिया गया। लखनऊ के बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज के विशेषज्ञों ने इस बात का खुलासा किया है। विशेषज्ञों ने गांववालों को बताया कि डायनासोर के अंडों के जीवाश्म हैं। डायनासोर की प्रजाति टायटेनोसारस के अंडे पाडल्या गांव और आसपास पाए गए हैं। पटेलपुरा, भील्लड़ बाबा, झाबा, घोड़ा, अखाड़ा, टकारी आदि गांवों में इन अंडों की पूजा की जा रही है।