बात साल 1947 में उस समय की है, जब भारत आजाद भी नहीं हुआ था। इसी साल सूबे के दमोह शहर के बीचोबीच एक जगदीश टॉकीज की शुरुआत हुई थी। इसे शहर के लोग जिले का सबसे पहला सिनेमाघर बताते हैं। अपनी शुरुआत के बाद से ही ये टॉकीज अदिकतर हाउस फुल ही रहा करता था। लेकिन, 1990 के दशक में इस टॉकीज के अंदर एक हत्या हुई थी, जिसके चलते कुछ समय के लिए इसे बंद कर दिया गया। हालांकि, कुछ समय बाद इसे दौबारा दर्शकों के लिए खोला गया और उसमें फिल्में दिखाई जाने लगीं। लेकिन, इस बार ये क्रम सिर्फ 2 से 3 साल ही चल सका और जगदीश टॉकीज के दरवाजे पर ताला जड़ गया, जो आज भी लगा हुआ है।
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दरअसल, जगदीश टॉकीज में हुई हत्या के बाद यहां के लोगों ने अपने जहन में एक भ्रम पाल लिया की इस टॉकीज में और इसके रास्ते से देर रात को गुजरने पर अजीबोगरीब आवाजें आती हैं। लोगों के इस भ्रम ने इतना बल पकड़ा कि, कुछ ही समय बाद टॉकीज तो छोड़िए लोगों ने उसके मार्ग पर ही जाना छोड़ दिया। वहीं, टॉकीज से आमदनी न होने के चलते उसकी देख रेख के अभाव में ये टॉकीज भी पूरी तरह से खंडहर में तब्दील हो गया और देखने में किसी भूतिया इमारत की तरह ही दिखने लगा। टॉकीज की इसी हालत के चलते लोगों में बना भ्रम और भी मजबूत हो गया।
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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक तानुज पाराशर नाम के एक स्थानीय निवासी ने बताया कि देर रात इस टॉकीज के रास्ते से निकलने पर अचानक ही डर मेहसूस होने लगता है। यही नहीं, एक अजीब सी कंपकंपी भी छूटने लगती है। वहीं, इमारत के भीतर से आने वाली आवाजें भी बेहद डरावनी होती हैं। कुछ लोगों का तो यहां तक कहना है कि इमारक से ऐसी आवाज आती है, जो अपनी ओर बुलाती है। फिलहाल, गौर करने वाली बात ये है कि या तो इलाके के लोगों में किसी ने बड़ी साजिश के तहत डराकर रखा है या फिर ये महज लोगों का भ्रम है, जो सुनी सुनाई बातों पर लोगों ने बना लिया है।