सुविधाएं बढ़ेंगी, पर्यटन को मिलेगा बढ़ावा और बलिदानियों के प्रति बढ़ेगी आस्था: डॉ. कौशिक
सिंग्रामपुर में होने जा रही कैबिनेट बैठक के मायने, पांच अक्टूबर को रानी दुर्गावती की 500 वींजन्म जयंती है दमोह. हर बैठक में सभी मंत्री परिषद सदस्यों को सम्मिलित करना संभव नहीं होता। अत: एक छोटा ग्रुप होता है, जिसे कैबिनेट कहते हैं। अधिकतर बैठक में केवल कैबिनेट मंत्री ही सम्मिलित किए जाते हैं। अधिकतर […]
डॉ. हरिसिह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय की राजनीति विभाग की प्रोफेसर अनुपमा कौशिक की कलम से..
सिंग्रामपुर में होने जा रही कैबिनेट बैठक के मायने, पांच अक्टूबर को रानी दुर्गावती की 500 वीं
जन्म जयंती है दमोह. हर बैठक में सभी मंत्री परिषद सदस्यों को सम्मिलित करना संभव नहीं होता। अत: एक छोटा ग्रुप होता है, जिसे कैबिनेट कहते हैं। अधिकतर बैठक में केवल कैबिनेट मंत्री ही सम्मिलित किए जाते हैं। अधिकतर इन बैठकों का आयोजन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में ही किया जाता रहा है, पर मुख्य मंत्री डॉ. मोहन यादव के कार्यकाल में ये बैठकें मध्य प्रदेश के विभिन्न स्थानों मे आयोजित करने का निर्णय लिया गया है। ५ अक्टूबर को मप्र सरकार की कैबिनेट बैठक रानी दुर्गावती की राजधानी व कर्मस्थली संग्रामपुर, सिंग्रामपुर में होना है, जो दमोह जिले मे स्थित है व जबलपुर से लगभग 50 किमी दूर है।
पांच अक्टूबर को रानी दुर्गावती की 500 वीं जन्म जयंती है। इस अवसर पर सम्पूर्ण कैबिनेट उनके सींगोरगढ़ दुर्ग का अवलोकन भी करेगी और उनकी मूर्ति पर श्रद्धांजलि भी अर्पित करेगी। मैं समझती हूं कि इसका उद्देश्य सामान्य जन मे अपने इतिहास, स्वतंत्रता सेनानियों व महत्वपूर्ण व्यक्तियों के प्रति चेतना और श्रद्धा उत्पन्न करना है। कैबिनेट की मीङ्क्षटग होने पर इस स्थान की सुविधाओं में भी वृद्धि होगी और सामान्य जन के मन मे भी इन स्थलों मे जाने की इच्छा उत्पन्न होगी, जिससे इन स्थानों का विकास भी होगा। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का उद्देश उन सभी स्थानों पर समय समय पर कैबिनेट बैठक आयोजित करना है, जो एतिहासिक और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है। ये करने से ये स्थल पर्यटन स्थलों के रूप मे विकसित होंगे, जो लंबे समय से उपेक्षित रहे हैं।
रानी का कुशल प्रशासन मंत्रियों के काम आएगा
रानी के कुशल प्रशासन में राज्य इतना समृद्ध हुआ कि लोग सोने के सिक्के व हाथी से कर का भुगतान करते थे। रानी ने कई तालाबों, मंदिरों, मठों, कुओं, बावडिय़ों व धर्मशालाओं का निर्माण कराया। शिक्षा व ज्ञान को प्रोत्साहित किया। सीमाओं को सुरक्षित किया। किलों का सुशक्त कराया। मालवा के शासक बाज बहादुर को खदेड़ा। स्वयं सेना का नेतृत्व किया। अकबर के सैनिकों के हाथों अपमानिक होने के स्थान पर स्वयं अपने को खंजर मार कर अपना बलिदान दिया।
वीरांगना रानी की स्मृति मे 1983 में जबलपुर विश्वविद्यालय का नाम रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय किया गया।
1988 मे भारत सरकार ने रानी पर एक डाक टिकट जारी किया। 2018 मे भारतीय तट रक्षक बल ने विशाखापटनम के अपने मुख्यालय मे आईजीसीएस रानी दुर्गावती, नामक गश्ती पोत प्रारभ किया। जिस स्थान पर रानी ने बलिदान दिया था। उस स्थान पर 24 जून को प्रतिवर्ष बलिदान दिवस मनाया जाता है। रानी को आज भी सम्मान से कहानियों, गीतों व कथाओं मे याद किया जाता है।
उनका सींगोरगढ़ का किला व जबलपुर मे स्थित मदन महल को देख भाल की आवश्यकता है। कैबिनेट की बैठक का इन स्थल पर आयोजन होने से इन स्थलों के प्रति लोगों का स्नेह व सम्मान बढ़ेगा।
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