दर्शील शाह का कहना है कि बांस के बल्ले से शॉट लगाना आसान होता है और दमदार शॉट मारे जा सकते हैं। शाह का कहना है कि बांस के बल्ले से यॉर्कर गेंद पर चौका मारना आसान होता है, क्योंकि इसका स्वीट स्पॉट बड़ा होता है। यॉर्कर के अलावा बांस के बैट से हर तरह के शॉट बेहतर तरीके से लगाए जा सकते हैं। वहीं बैट बनाने में इस्तेमाल होने वाली इंग्लिश विलो की आपूर्ति में थोड़ी समस्या है। इंग्लिश विलो के पेड़ को तैयार होने में लगभग 15 साल का वक्त लगता है। जब इस पेड की लकड़ी से बैट बनाते हैं तो लगभग 15 से 30 प्रतिशत लकड़ी बर्बाद हो जाती है।
वहीं शाह का कहना है कि बांस से बैट बनाना सस्ता है और यह प्रचूर मात्रा में उपलब्ध है। बांस तेजी से बढ़ता है और टिकाऊ भी होता है। बांस को तैयार होने में सात साल लगते हैं, जो इंग्लिश विलो से लगभग आधी अवधि है। वहीं बांस को उसकी टहनियों से उगाया जा सकता है। चीन, जापान, दक्षिण अमेरिका जैसे देशों में भी बांस काफी मात्रा में पाया जाता है।
इस शोध को ‘स्पोर्ट्स इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी’ पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। इसके अनुसार, शाह और डेविस के पास इस तरह के बल्ले का प्रोटोटाइप है, जिसे बांस की लकड़ी को परत दर परत चिपकाकर बनाया गया है। उनका कहना है कि बांस से बना बैट इंग्लिश विलो की लकड़ी से बने बैट से ज्यादा सख्त और मजबूत होता है। बांस के बैट में भी विलो बैट की तरह कंपन होता है। हालांकि शोधकर्ता अभी इस बैट में कुछ बदलाव करना चाहते हैं। हालांकि आईसीसी के नियमों के मुताबिक फिलहाल इंटरनेशनल क्रिकेट में सिर्फ लकड़ी (विलो) के बल्ले के इस्तेमाल की इजाजत है।