इसलिए बंद हुआ था
मध्यप्रदेश शासन द्वारा 1964 में स्थापित एएनएम ट्रेनिंग सेंटर ने 51 साल तक अपनी सेवाएं दीं। इस दौरान हर साल लगभग 70 छात्राएं छतरपुर और आसपास के जिलों से इस सेंटर में प्रशिक्षण लेने आती थीं। लेकिन 16 अक्टूबर 2015 को मिशन संचालक ने इस सेंटर को बंद करने का आदेश जारी किया और सेंटर का सामान झाबुआ स्थानांतरित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी। इसके बाद, इस सेंटर में प्रशिक्षण की गतिविधियां रुक गईं।
रंग-रोगन के बाद भी सेंटर नहीं शुरू हो सका
पूर्व कलेक्टर ने सेंटर के भवन का रंग-रोगन कराने के लिए आठ महीने पहले करीब डेढ़ लाख रुपये खर्च किए, ताकि सेंटर को फिर से चालू किया जा सके। हालांकि, सरकार से बजट आवंटित नहीं होने के कारण सेंटर की शुरुआत अब तक नहीं हो पाई है। स्वास्थ्य विभाग ने कुछ साल पहले वादा किया था कि सेंटर को फिर से शुरू किया जाएगा, लेकिन वादा पूरा नहीं हो सका। मिशन संचालक ने पहले इस सेंटर को झाबुआ स्थानांतरित करने का आदेश दिया था, लेकिन विरोध के बाद शासन ने इस आदेश को निरस्त कर दिया। इसके बावजूद, अभी तक सेंटर को चालू करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।
भविष्य के प्रस्ताव भी अधर में
पूर्व सीएमएचओ ने विभाग को एएनएम ट्रेनिंग सेंटर में जीएनएम और बीएससी नर्सिंग कोर्स शुरू करने का प्रस्ताव भेजा था, लेकिन उस पर भी कोई कार्यवाही नहीं हुई। अब जबकि छतरपुर को मेडिकल कॉलेज की सौगात मिल चुकी है, इस सेंटर के पुन: संचालन के प्रयासों की आवश्यकता और भी बढ़ गई है।
भवन भी गिराए जाने से बचा
एएनएम ट्रेनिंग सेंटर की बिल्डिंग गिरने से बच गई है। जिला प्रशासन ने इस भवन को गिराकर मेटरनिटी वार्ड बनाने का प्रस्ताव तैयार किया था, लेकिन भोपाल के उच्च अधिकारियों ने इसमें पेंच फंसा दिया था। बाद में, मेटरनिटी वार्ड और क्रिटिकल केयर यूनिट को एक ही बिल्डिंग में बनाने का निर्णय लिया गया। हालांकि, एएनएम ट्रेनिंग सेंटर की बिल्डिंग यथावत बनी हुई है।
छात्राओं की उम्मीदें
छतरपुर और आसपास के जिलों की छात्राएं अब भी इस सेंटर के फिर से शुरू होने का इंतजार कर रही हैं। उनका कहना है कि अगर केंद्र फिर से शुरू हो जाता है, तो उन्हें निजी संस्थानों की बजाय कम खर्चे में अच्छा प्रशिक्षण मिल सकेगा। सरकार को चाहिए कि वह इस मुद्दे को गंभीरता से लेकर जल्द से जल्द एएनएम ट्रेनिंग सेंटर की शुरुआत करे, ताकि छात्राओं को गुणवत्ता प्रशिक्षण मिल सके और वे बिना किसी आर्थिक दबाव के अपना करियर बना सकें। एएनएम ट्रेनिंग सेंटर बंद होने से छात्राओं को अब प्राइवेट सेंटरों में मोटी फीस चुकानी पड़ रही है। पहले इस सेंटर में कम खर्चे में प्रशिक्षण होता था, लेकिन अब छात्राओं को भारी शुल्क देकर प्राइवेट संस्थानों में एडमिशन लेना पड़ रहा है। इससे आर्थिक रूप से कमजोर छात्राओं के लिए यह कोर्स और भी महंगा हो गया है।
पत्रिका व्यू
एएनएम ट्रेनिंग सेंटर का बंद होना और छात्राओं को महंगे प्राइवेट संस्थानों की ओर धकेलना एक गंभीर समस्या बन चुकी है, जो केवल शिक्षा प्रणाली ही नहीं, बल्कि समग्र स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता को भी प्रभावित कर सकती है। शासन को अपनी प्रतिबद्धताओं को साकार करने के लिए तेजी से कदम उठाने होंगे, ताकि न केवल इस सेंटर को फिर से खोला जा सके, बल्कि नर्सिंग शिक्षा को सुलभ और सस्ती बनाने के लिए ठोस कदम भी उठाए जाएं। शासन को इस सेंटर को पुन: स्थापित करने की दिशा में गंभीर कदम उठाने होंगे। इसमें बुनियादी ढांचे का सुधार, प्रशिक्षकों की भर्ती, और सुविधाओं का विस्तार किया जा सकता है, ताकि यह संस्थान फिर से अपनी प्रभावशीलता को हासिल कर सके। सरकार को इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि प्राइवेट संस्थान फीस में एक समानता और पारदर्शिता बनाए रखें, ताकि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों को भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हो सके। इसके लिए शुल्क नियामक आयोग या उपयुक्त सरकारी निकाय की आवश्यकता हो सकती है, जो प्राइवेट संस्थानों के शुल्कों का निर्धारण कर सके। साथ ही, सरकार को वैकल्पिक शिक्षा प्रणालियों और प्रशिक्षण मॉड्यूल्स पर भी ध्यान देना चाहिए, जैसे कि डिस्टेंस लर्निंग या ऑनलाइन पाठ्यक्रमों की शुरुआत, ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली छात्राओं को भी नर्सिंग प्रशिक्षण प्राप्त हो सके।
इनका कहना है
एएनएम सेंटर को शुरू करने की पूरी तैयारी की जा चुकी है, लेकिन उच्चाधिकारियों को कई बार पत्र भेजने के बावजूद मामला लंबित है।
डॉ. आरपी गुप्ता, सीएमएओ