प्रदूषण का स्वास्थ्य पर पड़ता है ये असर
पीएम-10 कण हवा में छोटे होते हैं और आसानी से फेफड़ों तक पहुंच सकते हैं, जिससे अस्थमा, लंग्स इंफेक्शन, और हृदय रोगों जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ता है। यही कारण है कि वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए समय-समय पर सरकार और नागरिक दोनों को सतर्क रहने की आवश्यकता है।
क्या है पीएम-10 और पीएम-2.5
पीएम-10 (पार्टिकुलेट मैटर) 10 माइक्रोमीटर से कम आकार के धूल के कण होते हैं जो सांस के जरिए फेफड़ों तक पहुंच सकते हैं और विभिन्न श्वसन बीमारियों का कारण बन सकते हैं। पीएम-2.5 छोटे कण होते हैं जो शरीर में गहरे तक पहुंच सकते हैं और दिल की बीमारियों सहित कई स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकते हैं।
हवा की गुणवत्ता के ये है मानक
- पीएम 10 का 50 से कम होना अच्छे स्तर को दर्शाता है।
- 51 से 100 के बीच का संतोषजनक स्तर माना जाता है।
- अगर 100 से ऊपर होता है, तो यह हवा को अस्वस्थ बनाता है।
पानी का छिडक़ाव से घटता है प्रदूषण
विशेषज्ञों का मानना है कि नगर पालिका को सडक़ों पर पानी का छिडक़ाव करवाना चाहिए, जिससे धूल के कण हवा में न उड़े और प्रदूषण का स्तर कम रहे। खासकर गंदगी और धूल-मिट्टी से भरी सडक़ों के कारण प्रदूषण बढ़ सकता है। प्रदूषण नियंत्रण के लिए प्राकृतिक गैस के इस्तेमाल को बढ़ावा देने, वाहन प्रदूषण को नियंत्रित करने और ग्रीन स्पेस बढ़ाने की आवश्यकता है। इसके साथ ही आतिशबाजी जैसे प्रदूषण को बढ़ाने वाले तत्वों पर नियंत्रण पाने की भी जरूरत है।
फैक्ट फाइल
शहर पीएम 10 का वार्षिक औसत स्थिति
सागर 75.37 संतोषजनक
छतरपुर 57.37 संतोषजनक
दमोह 45.78 अच्छा
टींकमगढ़ 56.33 संतोषजनक
निवाड़ी 58.32 संतोषजनक
पन्ना 52.59 संतोषजनक