ये भी पढ़े:- मुकेश अंबानी को लगी 33,000 हजार करोड़ की चपत, बाजार में हड़कंप बीएसई एनालिटिक्स के आंकड़ों के अनुसार सेंसेक्स में भारी गिरावट (Share Market)
बीएसई एनालिटिक्स के आंकड़ों के अनुसार, पिछले एक महीने में सेंसेक्स 5.66% तक गिर गया है, जिसने जून 2022 में दर्ज की गई 4.58% की गिरावट को भी पीछे छोड़ दिया है। यह गिरावट बाजार में निवेशकों की चिंता को बढ़ा रही है। विशेष रूप से, 2020 में जब कोविड-19 महामारी अपने चरम पर थी, उस दौरान फरवरी और मार्च के महीनों में सेंसेक्स में क्रमशः 6% और 23% की भारी गिरावट देखी गई थी।
FII ने निकाले 82,000 करोड़ रुपए
सेंसेक्स और निफ्टी के लिए अक्टूबर अब तक का सबसे खराब महीना साबित हो रहा है। विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने भारतीय बाजारों से भारी बिकवाली करते हुए करीब 82,000 करोड़ रुपये निकाल लिए हैं। इस बिकवाली का सीधा असर भारतीय शेयर बाजार पर पड़ा है, जिससे बाजार में तेज गिरावट देखी गई है। कोविड संकट के बाद यह पहली बार है जब सेंसेक्स 5% तक गिर चुका है, जो पिछले निचले स्तर को पार कर चुका है। बाजार में इस गिरावट का प्रमुख कारण वैश्विक अनिश्चितताओं, विदेशी निवेशकों की बिकवाली, और घरेलू स्तर पर कमजोर तिमाही नतीजों को माना जा रहा है।
एफआईआई की एक महीने में रिकॉर्डतोड़ बिक्री
एफआईआई ने अक्टूबर के महीने में भारतीय शेयर बाजार (Share Market) में जबरदस्त बिकवाली दर्ज की है, जिसने कोविड महामारी के दौरान देखी गई बिकवाली को भी पीछे छोड़ दिया है। इस भारी बिकवाली के पीछे कई कारक जिम्मेदार माने जा रहे हैं, जिसमें वैश्विक निवेशकों की ‘भारत को बेचो, चीन को खरीदो’ रणनीति भी प्रमुख है। ये भी पढ़े:- अहोई अष्टमी पर राजस्थान के प्रमुख शहरों में सोने-चांदी की कीमतों में तेजी, देखिए अपने शहर का दाम प्रमोटरों द्वारा फंड जुटाने से भी दबाव
इस बिकवाली के अलावा, हुंडई इंडिया जैसे बड़े आईपीओ और क्यूआईपी (क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट) मार्ग के माध्यम से प्रमोटरों द्वारा फंड जुटाने की प्रक्रिया भी निवेशकों की पूंजी पर दबाव डाल रही है। इन बड़े फंडरेजिंग अभियानों के कारण बाजार में तरलता की कमी हो रही है, जिससे निवेशक अपने पोर्टफोलियो में बदलाव करने के लिए मजबूर हो रहे हैं।
देशों के बीच तनाव और अमेरिकी चुनाव का असर
अगले महीने होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को लेकर भी निवेशकों के बीच तनाव का माहौल देखने को मिलेगा। अमेरिकी चुनावों के परिणाम का अंतरास्ट्रीय बाजारों पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है, और इसी कारण से कई निवेशक सतर्क रुख अपना रहे हैं। वे अपने फंड को सुरक्षित रखते हुए बाजार में किसी भी संभावित उतार-चढ़ाव के लिए तैयार रहना चाहते हैं।