टाइगर रिजर्व घोषित होने के बाद बाघ आए तो खूब स्वागत हुआ, कुनबा बढाने के लिए रानी को लाया गया तो रामगढ़ में स्वागत में खुशी मनाई गई। रानी ने कुनबा बढाने के लिए तीन शावकों को जन्म दिया तो रामगढ़ में खुशियों की किलकारियां गूंज उठी। बाघों के कुनबा बढा तो जिम्मेदारों ने खूब वाही-वाही लूटी, लेकिन सुरक्षा व ट्रेकिंग की यहां कोई गारंटी नही दे पाए। बाघिन ने आते ही दो शावकों को जन्म दिया। वे कहा गए इसका पता नहीं बता सके। फिर दूसरी बार तीन शावकों को जन्म देकर कुनबा बढाया, लेकिन जन्म के कुछ माह बाद ही एक शावक लापता हो गया। उसको यह ढूंढ नहीं पाए, इसी बीच मंगलवार को खबर आई कि कुनबा बढ़ाने वाली बाघिन भी इस दुनिया में नहीं रही। उसकी निशानी के नाम पर कंकाल ही मिल पाए। कई दिनों से लापता थी।खोजने तक नहीं गए। बाघिन के बचे हुए कुनबे की सुरक्षा व ट्रेकिंग की आगे भी कोई गारंटी नहीं है। बाघों की सुरक्षा के लिए टाइगर रिजर्व का मुख्य कार्यालय बूंदी की बजाए रामगढ़ में स्थापित हो। तब ही उचित सुरक्षा व ट्रेकिंग हो पाएगी।
बूंदी. रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व में वन विभाग नियमित बाघों की ट्रेकिंग व उनके प्रे बेस को बढ़ाने के लिए लगा है। बाघों की ट्रेकिंग व उनके व्यवहार की वैज्ञानिक तरीके से मॉनिटरिंग के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान ने भी फील्ड बॉयोलॉजिस्ट को रामगढ़ में लगा रखा है।भारतीय वन्यजीव संस्थान व वन विभाग दोनों की सामूहिक ट्रेकिंग भी रामगढ की बाघिन व उसके शावकों की सही तरीके से मॉनिटरिंग नहीं कर सके। अब सवाल यह उठता है कि बाघिन की मौत का जिम्मेदार कौन है।