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राह से हटाने होंगे कांटे
रामगढ विषधारी वन्यजीव अभयारण्य बाघ टी-91 का आना अच्छी खबर तो है, लेकिन उसके लिए अभयारण्य में आच्छादित जूलीफ्लोरा (बिलायती बबूल) स्वतंत्र विचरण में बाधा नहीं बन जाए। वन्यजीव विभाग के जानकारों की माने तो जूलीफ्लोरा का कांटा बाघों के लिए सबसे बड़ा कष्टïदायक माना जाता है। बाघ के पग में जूलीफ्लोरा का कांटा लगते ही उसका चलना-फिरना दुभर बन जाता है। कभी बाघों का जच्चा घर रहा रामगढ़ विषधारी अभयारण्य अब जूलीफ्लोरा का जंगल बन गया है।
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रामगढ़ अभयारण्य पहले धोकड़े का जंगल ही था। जिसमें बाघों को विचरण में कोई बाधा नहीं होती थी। उस समय जहां-जहां पर बाघ विचरण करने के लिए जो रास्ता चुनते थे वह रास्ते अब जूलीफ्लोरा से आच्छादित बने हुए हैं।
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कभी सुनहरा रहा यहां का अतीत
अरावली की पहाडिय़ों के सघन क्षेत्र बाघों का जच्चा घर होने से वन्यजीवों की भरमार के कारण 307 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले रामगढ़-विषधारी को वन्यजीव अभयारण्य का दर्जा दिया था। दर्जा मिला तक इस जंगल में 14 बाघों व 90 बघेरों की उपस्थिति बताई थी। रामगढ़ किले की पहाडिय़ों के नीचे बनी लम्बी सुरंगों में कभी बाघों की मांदें बनी हुई थी। वन्यजीव विभाग के आंकड़ों पर नजर डाले तो अभयारण्य में 198 5 से ही बाघों की संख्या में कमी आती गई। वर्ष 1999 तक एक ही बाघ बचा था, जो भी लुप्त हो गया था।