शुरू हुआ सर्वे
वन भूमि से आबादी को बाहर निकालने की प्रक्रिया यहां जिला प्रशासन ने शुरू कर दी बताई। नगर परिषद के आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि डि-नोटिफाई कराए जाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है।
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टीम गठित
इसके लिए टीम गठित की गई, जिसमें बूंदी उपखंड अधिकारी, नगर परिषद आयुक्त, सहायक वन संरक्षक, नायब तहसीलदार, पटवारी, कानूनगो, क्षेत्रीय वन अधिकारी एवं वन विभाग के सर्वेयर को शामिल किया गया है।
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यूं बढ़ी परेशानी
जानकार सूत्रों ने बताया कि शहर के नैनवां रोड से जैतपुर तक, जयपुर रोड से फूलसागर मोड़ तक, रीको औद्योगिक क्षेत्र, रजतगृह कॉलोनी, नवजीवन संघ कॉलोनी, औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आईटीआई), बहादुर सिंह सर्किल, बायपास, बालचंद पाड़ा (परकोटे का भीतरी हिस्सा) अभयारण्य की सीमा में बताए गए थे। इसे बाहर निकालने के लिए बूंदी ने लंबा संघर्ष किया। इसी वर्ष आबादी क्षेत्र को रामगढ़ से मुक्ति का नोटिफिकेशन जारी हुआ। इस नोटिफिकेशन में खसरा संख्या २ को वन भूमि दर्शा दिया। इसी को आधार बनाकर वन विभाग ने इस जमीन का इंतकाल उनके नाम खोलने का आवेदन प्रस्तुत किया बताया।
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प्रत्यावर्तन के लिए सौंप चुके जमीन
बूंदी की 357.81 हैक्टेयर भूमि अभयारण्य की जद में थी। इसके प्रत्यावर्तन के लिए राजस्थान वन्यजीव बोर्ड को मई 2013 में प्रस्ताव भेजे गए थे। आबादी क्षेत्र को बाहर निकालने के लिए जवाहर सागर अभयारण्य से लगी धनेश्वर की भूमि मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व को देने के लिए मंजूरी दी थी। मुकुंदरा हिल्स प्रशासन ने जमीन लेने के लिए स्वीकृति दी। बाद में जमीन कम होने पर अन्यत्र भी जमीन संभलाई गई।
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विकास अटकाने की मंशा तो नहीं
डायवर्जन के प्रस्तावों और राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की शर्तों को पूरा करने के बाद सुप्रीम कोर्ट की एम्पावर्ड कमेटी ने आबादी को अभयारण्य सीमा से मुक्त करने पर मुहर लगाई थी। तब बूंदी शहर का 357.81हैक्टेयर हिस्सा अभयारण्य की सीमा में होने से यहां के कई विकास कार्य अटके हुए थे। इसके बाद नोटिफिकेशन जारी हुआ और वनविभाग ने अपनी सीमा में चारदीवारी करने का काम भी शुरू कर दिया। ऐसे में अचानक फिर से इसे वन भूमि में बताए जाने के कायदों को जानकार लोगों ने सिर्फ बूंदी के विकास को अटकाए जाने की मंशा बताया है।