फिल्म के टीजर में भगवान राम, हनुमान और रावण के गलत चित्रण को लेकर इसका विरोध किया जा रहा है। अयोध्या के राम मंदिर के मुख्य पुजारी ने इस फिल्म को बैन करने की मांग की है।
इस बीच ‘आदिपुरुष’ फिल्म के डायलॉग राइटर और गीतकार मनोज मुंतशिर (Manoj Muntashir) की प्रतिक्रिया सामने आई है। उन्होंने आज तक को दिए इंटरव्यू में कहा, ‘हर युग की बुराई का अपना चेहरा होता है। अलाउद्दीन खिलजी इस दौर की बुराई का चेहरा है। हमने ‘आदिपुरुष’ के रावण को जानबूझकर ऐसा नहीं बनाया है।’
मनोज मुंतशिर अपने ट्विटर हैंडल पर भी इस इंटरव्यू का एक क्लिप शेयर किया है। इसमें उनके साथ फिल्म के डायरेक्टर ओम राउत भी नजर आ रहे हैं। रावण की खिलजी से तुलना पर मनोज मुंतशिर ने कहा, ‘हमने जो 1 मिनट 35 सेकंड का टीजर देखा है, उसमें रावण ने त्रिपुंडी लगाया हुआ है। जो देखा है उतने की बात कर रहा हूं, बाकी तो बहुत कुछ मेरे पास दिखाने को है, जो लोगों ने देखा नहीं है।’
मनोज ने आगे कहा कि ‘बड़ी ही विनम्रता से कह रहा हूं कि जब फिल्म आएगी तो वो सब देखेंगे। कौन सा खिलजी त्रिपुंडी लगाता है। कौन सा खिलजी तिलक धारण करता है। कौन सा खिलजी जनेऊ पहनता है और कौन सा खिलजी रुद्राक्ष धारण करता है। हमारे रावण ने ये इसी 1 मिनट 35 सेकंड के टीजर में किया हुआ है।’
उन्होंने कहा, ‘दूसरी बात कि हर युग की बुराई का अपना चेहरा होता है। रावण मेरे लिए बुराई का चेहरा है, अलाउद्दीन खिलजी इस दौर के बुराई का चेहरा है और अगर वो मिलता-जुलता भी है, हमने इंटेंशनली ऐसा नहीं किया है, लेकिन अगर मिल भी गया तो मुझे लगता नहीं कि कोई ऐतराज की बात है। अलाउद्दीन खिलजी तो कोई नायक ही नहीं है, वो बुरा है और अगर रावण का चेहरा उससे मिलता है और उससे इसलिए ज्यादा नफरत है, क्योंकि वो खिलजी जैसा दिखता है तो कोई बुराई नहीं है इसमें।’
उन्होंने आगे कहा कि ‘ओम राउत ने जिस तरह से दिखाया है, मैंने देखा कि रावण मां सीता का हरण कर रहा है लेकिन एक क्षण के लिए भी उन्हें स्पर्श नहीं करता। वह माया से हरण करता है। मैंने पूछा ओम से कि ये तो मैंने कभी सोचा ही नहीं क्योंकि हमने पहले जब भी देखा है उसमें रावण हाथ पकड़कर उन्हें खींचकर ले जाते देखा है। ओम राउत कुर्सी से खड़े होकर कहते हैं, सर वो मेरी मां हैं और उन्हें कोई भी छू नहीं सकता। ये अप्रोच है एक मेकर का इस फिल्म के लिए।’
मनोज ने यह भी बताया कि यह उनकी 70वीं फिल्म है जिसके लिए उन्होंने डायलॉग लिखे हैं और पहली बार ऐसा हुआ है कि जिस दफ्तर में वह अपने डायलॉग लिख रहे थे, अपने जूते बाहर खोलकर आया करते थे।’