अतीत की यादों के सहारे
निर्देशक अपर्णा सेन की पहली फिल्म ’36 चौरंगी लेन’ तीस साल से भारत में रह रही एंग्लो-इंडियन टीचर मिस स्टोनहोम (यह किरदार शशि कपूर की पत्नी जेनिफर कैंडल ने अदा किया) के उदास अकेलेपन की मार्मिक कहानी ही नहीं, इंसानी रिश्तों की विडम्बना और उनके तार-तार होने की तल्ख दास्तान भी है। अविवाहित मिस स्टोनहोम अतीत की यादों और पालतू बिल्ली के सहारे जिंदगी काट रही हैं। उनका वृद्ध भाई ओल्ड पीपुल होम में रहता है, जिससे मिलकर वह थोड़ा-बहुत अपनापन जुटा लेती है। स्कूल में शेक्सपियर का साहित्य पढ़ाने वालीं मिस स्टोनहोम को उनकी एक रिश्तेदार विदेश आने का न्योता भेजती रहती है, लेकिन उनका मन भारत में इस कदर रम गया है कि इस उम्र में वे किसी अजनबी देश में नहीं बसना चाहतीं। ‘बाकी भी इसी तरह गुजर जाए तो अच्छा’ की तर्ज पर वे जैसे-जैसे बसर कर रही हैं।
मृगतृष्णा-सी खुशी
आत्मीयता की चाह रखने वाली इस वृद्धा की मुलाकात अपनी पुरानी छात्रा (देबश्री राय) और उसके प्रेमी (धृतिमान चटर्जी) से होती है, तो स्नेह का वह स्रोत फिर पिघलने लगता है, जो जिंदगी के सर्द, उदास और एकाकी सफर के दौरान जमकर बर्फ हो गया था। इस युवा जोड़े का साथ पाकर उसे महसूस होता है कि उसकी जिंदगी को नया मकसद मिल गया है, लेकिन यह खुशी उस समय मृगतृष्णा-सी लगने लगती है, जब उसे पता चलता है कि प्रेमी जोड़ा सिर्फ मिलने के ठिकाने के तौर पर उसके मकान का इस्तेमाल कर रहा है। जिंदगी के आखिरी पड़ाव के दौरान एक वृद्धा के अकेलेपन और उदासी के ’36 चौरंगी लेन’ में कई रूप, रंग, स्तर और कोण हैं। जेनिफर कैंडल ने चेहरे की रेखाओं के उतार-चढ़ाव और आंखों की भाव-प्रवणता से किरदार को ऐसी गहराई दी कि फिल्म पूरी होने के बाद भी उनकी जिंदगी का सूनापन काफी दूर तक पीछा करता है।
जीते थे तीन नेशनल अवॉर्ड
मंथर गति, धुंधलाए रंगों और उदास कविता जैसी यह फिल्म मनोरंजन के साथ-साथ मन की परतों को भी खोलती है। फिल्म में कई ऐसे प्रसंग हैं, जिनमें संवाद नहीं हैं, फिर भी इनकी गहराई दिल तक पहुंचती है। फिल्म के बाकी कलाकारों में सोनी राजदान, संजना कपूर, करण कपूर और जॉफरी कैंडल शामिल हैं। मनीला के अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में गोल्डन ईगल अवॉर्ड के अलावा ’36 चौरंगी लेन’ ने तीन नेशनल अवॉर्ड भी जीते। लेकिन सबसे बड़ा अवॉर्ड यह था कि इसने प्रबुद्ध दर्शकों के दिल जीते थे।