ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों ने एक प्रोग्राम को अपडेट करने के लिए टीकाकरण के डेटा का इस्तेमाल किया। इसका मकसद यह पता लगाना था कि वायरस से सबसे ज्यादा खतरा किसे है। डेटा से पता चला कि टीके की दोनों खुराक लेने के बाद भी किडनी ट्रांसप्लांट, डाउन सिंड्रोम और सिकल सेल के मरीजों को कोरोना से सबसे अधिक खतरा था। इसी तरह का खतरा बुजुर्गों और टीका नहीं लेने वाले लोगों में भी देखा गया।
हालांकि टीकों ने मरीजों के अस्पताल में भर्ती होने या उनकी मौत की आशंका को काफी हद तक कम कर दिया, लेकिन उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता स्वस्थ लोगों की तरह मजबूत नहीं थी। किंग्स कॉलेज, लंदन के प्रोफेसर पेनी वार्ड का कहना है कि टीकाकरण कोरोना की रोकथाम में 100 प्रतिशत प्रभावी नहीं है।
मरीजों को खतरा औसत से अधिक-
नॉटिंघम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कैरल कपलैंड ने बताया कि टीके की दोनों डोज लेने के बाद कीमोथेरेपी, एचआइवी, डेमेंशिया और पार्किंसंस के मरीजों में कोरोना का खतरा औसत से अधिक रहता है। ब्रिटेन में बसे भारतीय और पाकिस्तानी मूल के लोगों में टीकाकरण के बाद भी गंभीर बीमारी की उच्च दर पाई गई।
3 करोड़ वयस्कों को बूस्टर डोज-
एनएचएस (नेशनल हेल्थ सर्विस) ने टीकाकृत करीब 52 लाख ब्रिटिश लोगों के आंकड़े को कैलकुलेटर से अपडेट किया था। कैलकुलेटर से उच्च जोखिम के दायरे में पाए गए सभी लोगों को सर्दियों में बूस्टर डोज दी जाएगी। इनमें तीन करोड़ से ज्यादा वयस्कों को तीसरी खुराक मिलेगी।