कद्दावर राजनेता ओडिशा के हीरो बीजू पटनायक की गुरुवार को 104 वीं जयंती मनायी गई। पटनायक ओडि़शा और भारत के चहेते ही नहीं बल्कि इंडोनेशिया के भी चहेते नेता रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट करके बीजू पटनायक के साहसिक किस्से शेयर करके श्रद्धांजलि दी। ओडिशा के मुख्यमंत्री व केंद्र में मंत्री रहे बिजयानंद पटनायक का प्यार का नाम बीजू पटनायक था। उनकी पहचान फ्रीडम फाइटर, हिम्मत वाला विमान चालक और बड़े राजनेता के रूप में रही है। उन्हें आधुनिक ओडिशा का शिल्पी भी कहा जाता है।
देश के फ्रीडम मूवमेंट में पंडित जवाहरलाल नेहरू और उनकी दोस्ती काफी विश्वसनीय मानी जाती थी। देश की इंडोनेशिया से सांस्कृतिक संबंध काफी पुराने हैं। ओडिशा के व्यापारी जलमार्ग से इंडोनेशिया, बाली, सुमात्रा आदि द्वीपों को जाते थे। मिलेनियम सिटी में कटक बाली यात्रा का सांस्कृतिक आयोजन सुप्रसिद्ध है। भारत-इंडोनेशिया के आपसी संबंधों के कारण नेहरू की दिलचस्पी इंडोनेशिया की स्वतंत्रता की लडा़ई में भी थी।
देश के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू उपनिवेशवाद के खिलाफ थे। उन्होंने बीजू पटनायक को इंडोनेशिया को डचों से मुक्त कराने में मदद करने की जिम्मेदारी दी थी जिसे बीजू बाबू ने बखूबी निभाया भी। उन्होंने इंडोनेशियाई लड़ाकों को डचों से बचाने के लिए बीजू बाबू से कहा था। उनके कहने पर बीजू पटनायक इंडोनेशियायी फ्रीडम फाइटरों को बचाने के लिए बतौर विमान चालक 1948 में ओल्ड डकोटा एयरक्राफ्ट लेकर सिंगापुर से होते हुए जकार्ता जा पहुंचे थे।
उनके इंडोनेशिया के हवाई क्षेत्र में पहुंचते ही डच सेना ने बीजू पटनायक को उनके विमान समेत मार गिराने की कोशिश की थी। नतीजतन बीजू बाबू को जकार्ता के निकट डकोटा को उतारना पड़ा। वहां पर उन्होंने जापानी सेना के बचे ईंधन का उपयोग किया था। इसके बाद कई इलाकों से होते हुए अपने साथ विद्रोही सुलतान शहरयार और सुकर्णों को लेकर दिल्ली आ गए जहां उनकी गुप्त बैठक नेहरू के साथ करायी थी। इसके बाद डा.सुकर्णों आजाद इंडोनेशिया के पहले राष्ट्रपति बने।
सुकर्णों ने बीजू पटनायक को वहां के सर्वोच्च सम्मान भूमि पुत्र से सम्मानित किया था। यही नहीं 1996 में इंडोनेशिया ने 50वां स्वतंत्रता दिवस मनाया और बीजू पटनायक को सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार ‘बिंताग जसा उतामÓ से सम्मानित किया। सुकर्णों की बेटी का नाम मेघावती बीजू पटनायक ने ही सुझाया था। कहा जाता है कि बीजू बाबू ने चीन के कब्जे से पहले तिब्बत और भारत को हवाई मार्ग से जोडऩे की असफल कोशिश की थी।