World Samosa Day 2024: क्या आप जानते हैं नॉनवेज फूड था समोसा, दुनिया में मशहूर है एमपी का ‘बब्बन समोसा’
World Samosa Day 2024: चौंक गए ना… लेकिन यही सच है क्योंकि समोसा भारत की डिश नहीं था, बल्कि ये ईरान से सफर तय करते हुए भारत आया और नॉनवेजेटेरियन के साथ ही वेजेटेरियन फूड में भी शामिल हो गया। आज अकेले एमपी में कई स्वादों राजा है समोसा, बब्बन समोसे का नाम दुनियाभर में है फेमस आप भी जरूर पढ़ें समोसे की ये इंट्रेस्टिंग खबर…
World Samosa Day 2024: शायद ही कोई होगा, जिसे समोसा नहीं भाता हो। मुख्य रूप से आलू के समोसे ज्यादा लोकप्रिय हैं। लेकिन अब पनीर, काजू, मटर के भी समोसे मिलने लगे हैं। हर गली-नुक्कड़ पर मिलने वाला समोसा भले ही भारतीय स्नैक न हो, लेकिन इसके भारतीयकरण की दास्तां बेमिसाल है।
हालांकि आज से 500 साल पहले तक भारतीय उपमहाद्वीप में समोसे का नाम तक कोई नहीं जानता था। लेकिन अब आलम ऐसा है कि देश के हर दो किलोमीटर वृत्त में इसका स्वाद बदल जाता है।यह भी दिलचस्प है कि समोसा ईरान से भारत आने से पहले तक मांसाहारी स्नैक था। पर अब दुनिया भर में आलू वाला शाकाहारी समोसा सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है।
आज वर्ल्ड समोसा दिवस (World Samosa Day) पर हम आपको बता रहे हैं समोसे को अलग-अलग जगह क्या कहा जाता है..वहीं एमपी के खास समोसों की कहानियां भी…
इंदौर : पीएम मोदी भी कर चुके हैं सर्राफा के समोसे की तारीफ
इंदौर के सर्राफा बाजार के कॉर्नर पर मित्तल समोसा कॉर्नर है। वर्ष 1945 में प्रभुलाल मित्तल ने इसकी शुरुआत की थी। तब इंदौर में समोसे की अकेली दुकान थी। स्पेशल चटनी के साथ खट्टा-मीठा और चटपटा समोसा सबको भाता है। सेलिब्रिटीज भी इस समोसे का लुत्फ उठा चुकी है। पीएम नरेन्द्र मोदी भी इसकी तारीफ कर चुके हैं।
हर जगह नाम भी अलग-अलग (different name of samosa)
पश्चिम बंगाल और बिहार में इसे सिंघाड़ा कहा जाता है, जबकि हैदराबाद में लुक्मी। गोवा में इसे चामुकास कहा जाता है। गुजरात में फटाका समोसा सबसे ज्यादा लोकप्रिय है। कराची में पतली परत के समोसे लोकप्रिय हैं, जिसे कागजी समोसा कहा जाता है। मालदीव में यह बाजिया नाम से बिकता है।
जबलपुर: बप्पी लाहिरी के समोसे
जबलपुर के तीन पत्ती चौराहे पर स्थित गुप्ता समोसा सेंटर के संचालक अनोखी वेशभूषा और समोसे के लाजवाब स्वाद के लिए लोकप्रिय हैं। 20 साल पुरानी दुकान के संचालक बप्पी लाहिरी यानी माला वाले बाबा गले में 30 से 40 मालाएं पहनकर समोसे तलते हैं। समोसे के साथ वह भी ट्रेंड में रहते हैं।
झाबुआ: 1988 से नहीं बदला केला समोसे का स्वाद
सत्कार रेस्टोरेंट में 1988 से केले वाले समोसे मिल रहे हैं, जिनका स्वाद आज भी बरकरार है। 36 साल में बहुत कुछ बदल गया, लेकिन नहीं बदला तो समोसों का स्वाद।
खासकर जैन समाज के लोग जो आलू-प्याज और लहसुन नहीं खाते है, उनके लिए केले के समोसे बनाए जाते हैं। प्रतिदिन दो हजार समोसों की बिक्री होती है।
बुरहानपुर का खट्टा-मीठा समोसा लोकप्रिय
दराबा और जलेबी के साथ ही खट्टा-मीठा स्वाद समोसा भी लोकप्रिय है। पवन टेस्टी कॉर्नर के संचालक किशोर दलाल ने बताया, पिताजी पूनमचंद दलाल 25 साल पहले गुजरात गए थे, वहां ऐसा समोसा खाया था। खुद हलवाई थे, इसलिए स्वाद समझ लिया और गुजराती स्वाद जल्दी ही लोगों की जुबान पर चढ़ गया।
महू का काली मिर्च-पुदीना वाला समोसा
धार जिले के महू में आनंद चौपाटी पर शर्माजी का गरमा-गरम समोसा लोकप्रिय है। दुकान के संचालक अनूप शर्मा बताते हैं, पिताजी ने 50 साल पहले शुरुआत की थी।
आलू, मूंगफली के दाने, हरी और काली मिर्च और पुदीना मिलाकर समोसा बनाते हैं। रोजाना एक से डेढ़ हजार समोसे बिकते हैं।
बड़वानी के सेंधवा ब्रांड की विदेश तक पहचान
समोसा भले ही बाहर से आया, लेकिन अब यह विदेश तक लोकप्रिय हो चुका है। इनमें से एक है, बड़वानी का सेंधवा ब्रांड के समोसे। 40 साल से बब्बन समोसे की दुकान में पूरे पके व आधे कच्चे समोसे भी मिलते हैं। शिव शंकर गुप्ता बताते हैं, 1982 में गिरजा शंकर गुप्ता ने शुरुआत की।
भाई बब्बन गुप्ता और पत्नी राजश्री गुप्ता ने अनूठा मसाला तैयार किया। जिसे सबने पसंद किया। बब्बन के निधन के बाद समोसे का नाम ही बब्बन समोसा (Babban Samosa) रख दिया।
यहां पढ़ें समोसे के सफर की इंट्रेस्टिंक कहानी
भारत में विदेश से आया समोसा
भारतीय खाद्य समीक्षक और इतिहासकार पुष्पेश पंत कहते हैं कि यह बात कितनी नागवार गुजरे लेकिन यह मानना पड़ेगा कि समोसा भारत की संतान नहीं है। भारत में इसका प्रवेश सिल्क रोड महान ऐतिहासिक रेशमी राजमार्ग के जरिए मध्य एशिया से हुआ है। कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्केमिस्तान आदि जगहों पर आप देखें, समोसा नाम की कोई चीज खाई जाती है।
यहां सब जगह सामोसा, सम्बोसा अलग-अलग नाम से मिलता है। कहीं वह बेडौल होता है, तो कहीं याक का मांस होता है, कहीं उबला हुआ, तो कहीं भुना हुआ होता है। पर यह मानना होगा कि इससे ही हमारे समोसे की उत्पत्ति हुई है। हम तक यह पर्शिया यानी फारस, ईरान से पहुंचा है। वहां एक लुकमी बनती है, जो तिकोनी पेस्ट्री होती है। इसका एक रूप हैदराबाद में भी मिलता है।
हर जगह अलग रूप, अलग नाम
हम भारत के अलग-अलग हिस्सों में जाएं, तो भागलपुर बिहार में तो लबंग-लतीका नाम का मीठा समोसा मिल जाएगा। इलाहाबाद के लोकनाथ में हरि के समोसे मिलेंगे, जो महीनों चलते हैं, जिसकी पिट्ठी को इतना भूना जाता है कि उसमें से पानी व नमी निकल जाती है।
हैदराबाद में पोटली समोसा मिलता है, जिसमें कीमे की भरावन की जाती है। कॉकटेल समोसा, अंडे वाला समोसा भी मिलता है। औरंगाबाद में बीफ समोसा भी मिलता है। दिल्ली में ही 10-15 तरह के समोसे मिलते हैं। स्वास्थ्य के सजग लोगों के लिए बेक समोसा भी होता है। थाईलैंड का पट्टी समोसा भी होता है।
शुद्ध मटर, तो कहीं पनीर और कहीं भीमकाय समोसे भी
पुष्पेश पंत कहते हैं कि शुद्ध मटर के समोसे भी होते हैं। पनीर के समोसे, तो कहीं भीमकाय समोसा भी मिलता है। कढ़ी समोसा भी होता है, तो चॉकलेट का समोसा भी मिलता है। कुल मिलाकर कहा जाए, तो समोसा अनंत है और इसकी कथा भी अनंत है। अगर हम एक केंद्र बिंदु बनाएं और वृत्त बनाएं तो हर दो किलोमीटर वृत्त पर समोसा बदल जाता है।
आजकल लोगों को समोसे की पहचान नहीं है। बाहरी कलेवर कितना पतला है। बड़ा समोसा खा लिया और चाय पी ली, तो पेट भर ही जाती है। हमारे एक मित्र हैं मंजीत सिंह गिल जो नामी-गिरामी शेफ हैं, वह इसे एक पौष्टिक आहार कहते हैं।
तुगलक से पहले भारत पहुंच चुका था समोसा
भारत में समोसे का प्रवेश मोहम्मद बिन तुगलक के पहले हो चुका था। मोहम्मद बिन तुगलक के दस्तरखान, अकबर के दस्तरखान में समोसे का जिक्र मिलता है। भारत जब समोसा पहुंचा, तो इसका कायाकल्प होना शुरू हो गया।